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भीतर डूबो
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कहां शुरू होती है ? समुद्र गंगा से बनता है— गंगाओं से बनता है। फिर बादल बनते हैं । फिर बादलों से गंगोत्रियां बनती हैं। गंगोत्रियों से गंगा बनती है। गंगा से सागर बनते हैं। सागर से बादल बनते हैं - ऐसा वर्तुल है।
इसलिए हमने संसार को संसार कहा । संसार शब्द का अर्थ होता है : चाक, दह्वील । वह जो भारत के राष्ट्रीय झंडे पर चक्र है, वह बुद्ध-प्रतीक है । वह बुद्ध ने ही सबसे पहले उस प्रतीक की चर्चा शुरू की थी। वह अशोक के स्तंभ से लिया गया है।
जैसे चाक गाड़ी का घूमता रहता है, घूमता रहता है - ऐसा ही जीवन चलता जाता है, चलता जाता है; न कहीं शुरू हुआ है, न कहीं अंत होगा।
इसलिए बुद्ध कहते हैं : किसी ने जगत को बनाया नहीं; कोई स्रष्टा नहीं है । अनादि है यह । जैसे नदी की धार । सदा से है यह और सदा रहेगा। लेकिन सदा से है, और सदा रहेगा, फिर भी एक क्षण को कोई चीज थिर नहीं है, सब बदलाहट है। सिर्फ परिवर्तन को छोड़कर सब चीजें परिवर्तित हो रही हैं।
तो नदी में पहले तो बहाव, परिवर्तन, यात्रा – इसका बोध है। और अगर यह बात समझ में आ जाए कि सब चीजें बह रही हैं, तो मुट्ठी खुल गयी, तो वीतरागता फल गयी। फिर तुम पकड़ोगे नहीं।
जो धन तुम्हारे पास आया है, वह इसीलिए आया है कि किसी के पास से चला गया है । और तुम्हारे पास भी ज्यादा देर नहीं रह सकता, क्योंकि किसी और के पास उसे जाना है। अंग्रेजी में जो शब्द है धन के लिए करेंसी, वह बिलकुल ठीक है; वह करेंट से बना है, जैसे धार नदी की। एक हाथ से दूसरे हाथ में धन बहता रहता है—यही उसकी करेंसी है।
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लेकिन तुमने धन को पकड़ लिया, गड्डा खोदकर घर में हंडे में बंद करके दबा दिया। वह धन धन न रहा, मिट्टी हो गया। धन तो तभी तक धन है, जब एक हाथ से दूसरे हाथ में जाता रहे ।
इसलिए कंजूस धन को मार डालता है। उसके हाथ में धन मिट्टी हो जाता है। उसका कोई अर्थ ही नहीं रहा । तुमने अपनी तिजोड़ी में कंकड़-पत्थर भरकर रख लिए, कि नोट भरकर रख लिए - क्या फर्क है ? जब तक तिजोड़ी से नोट चले नहीं, एक हाथ से दूसरे हाथ में न जाए, तब तक वह धन है ही नहीं ।
इसलिए भारत में जितना धन है, उतना धन नहीं है। और अमरीका में जितना धन है, उससे हजार गुना धन है। क्योंकि पैसा चलता है, सरकता है। सिर्फ अमरीकन जानता है धन को हजार गुना करने का उपाय, इसलिए धनी है।
मुझ से लोग आकर पूछते हैं, विशेषकर जो अमरीका से आते हैं, वे मुझसे पूछते हैं कि भारत गरीब क्यों है? क्योंकि भारत मूढ़ है। गरीबी मौलिक नहीं है; मूढ़ता मौलिक है। मूल में मूढ़ता है। यहां धन को पकड़ने की आदत है; यहां धन
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