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भीतर डूबो
लगते हैं ।
प्रेम तो धारा है, बहाव है। विवाह व्यवस्था है, ठहराव है। प्रेम तो प्राकृतिक है, विवाह सामाजिक है। प्रेम परमात्मा का है, विवाह आदमी की निर्मित व्यवस्था है। प्रेम अपूर्व रहस्य है, विवाह व्यवस्था है; कुछ भी अपूर्व नहीं है वहां । और जहां विवाह भारी हुआ, प्रेम मर जाएगा। क्योंकि विवाह ठहराने की कोशिश है उसको, जो कभी नहीं ठहरता ।
और यही हम हर चीज में कर रहे हैं। एक सुख आया कि हमने मुट्ठी बांधी और हमने कहा, अब कभी जाना मत। सुख के पक्षी को बंद कर लिया मुट्ठी में । उसी बंद करने में सुख का पक्षी मर जाता है।
जो आया है, वह जाएगा।
तो वासुदेव कह रहा है : इस नदी से मैंने सीखा कि कुछ भी थिर नहीं है । सब बह रहा है। पकड़ो मत । जकड़ो मत।
यही तो संदेश है सारे बुद्धों का - परिग्रह नहीं । अपरिग्रह का अर्थ इतना ही है कि चीजें आती हैं, जाती हैं; तुम पकड़ो मत। जब हों, तब प्रफुल्लित रहो । जब चली जाएं, तब भी प्रफुल्लित रहो ।
तुमने जहां पकड़ना शुरू किया, जहां तुमने नदी की धार रोकी और बांध बनाया, वहीं गंदगी, वहीं सड़ांध पैदा हो जाती है। नदी का सरोवर बन जाना नर्क है । और हम सब सरोवर बन जाते हैं। हम बड़े भयभीत हैं परिवर्तन से ।
जवान बूढ़ा नहीं होना चाहता । यह उसकी आकांक्षा पूरी नहीं हो सकती, इसलिए दुखी होगा। दुख जिंदगी नहीं लाती, दुख तुम्हारी आकांक्षा लाती है। जवान बूढ़ा नहीं होना चाहता। जो जीवित है, वह मरना नहीं चाहता । यह कैसे होगा ?
जो जन्मा है, मरेगा भी । जो जवान है, बूढ़ा भी होगा। इस सत्य को देखो, समझो, और इस सत्य के साथ राजी हो जाओ; पकड़ो मत। जब जवानी बुढ़ापा बनने लगे, सहज भाव से बूढ़े हो जाओ। जब जिंदगी मौत में ढलने लगे, सहज भाव मौत में उतर जाओ। यही जीवन का प्रवाह है।
जो आए, उसे अंगीकार कर लो। जो जाए, उसे अलविदा । ऐसा आदमी दुखी नहीं होगा। कैसे दुखी होगा ? उसने दुख का मूल सूत्र ही तोड़ दिया। उसने दुख के आधार जला दिए । उसने जड़ काट दी।
जब प्रेम आए, तो नाचो । और जब प्रेम चला जाए, तो रोओ मत। जो आया था, वह जाएगा ही। फूल सुबह खिला था, सांझ मुर्झाएगा ही। और अगर तुमने चाहा कि फूल कभी न मुर्झाए, तो फिर प्लास्टिक के फूल खरीदोगे; फिर असली फूल तुम्हारे जीवन में नहीं रह जाएंगे। फिर जाओ, बाजार से प्लास्टिक के फूल खरीद लो; फिर वे कभी न मरेंगे, क्योंकि वे पैदा ही नहीं हुए। वे कभी न मरेंगे, क्योंकि वे जिंदा ही नहीं हैं।
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