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धर्म का सार - बांटना
हैं। इस अंकुर को यह कला हाथ लग गयी कि दिया, तो बढ़ता है।
मगर तुममें और अंकुर में बुनियादी भेद नहीं है। तुम भी धन को पकड़ रहे हो, वह भी धन को पकड़ रहा है। इसलिए भाव कोई शुभ नहीं है। अशुभ भाव से ही दिया जा रहा है। इसलिए बीज तो फेंक रहा है, लेकिन ठीक भूमि में नहीं पड़ रहे हैं।
और चूंकि देने से मिलता है, इसलिए देने में वह पात्रता की भी फिकर नहीं करता । देने से मिलता है— कोई ले जाए। चोर ले जाएं, हत्यारे ले जाएं। फिर चाहे इसके धन को पाकर हत्यारे हत्या करें, और चाहे चोर इसके धन को पाकर चोरी करें - इसकी इसे कोई चिंता नहीं है। यह फिकर ही नहीं करता कि किस खेत में बीज पड़ रहे हैं। इसको तो मिलने का राज हाथ लग गया।
इसलिए बुद्ध कहते हैं : किसको दिया, यह भी खयाल में रहे। और किनको देने योग्य है... ।
'खेतों का दोष
तृण
है. '
जैसे खेतों में घास-पात उगी हो, वहां तुम बीजों को फेंक दो, खराब हो जाएंगे। घास-पात खा जाएगी उन बीजों को । पैदा भी होंगे, तो बढ़ न पाएंगे, घास-पात में खो जाएंगे।
'ऐसे ही प्रजा का दोष राग है ।'
रागी को दोगे, तो तुम्हारा दिया हुआ खो जाएगा। उसके राग को ही बढ़ाएगा । जैसे किसी आदमी को तुमने रुपए दे दिए और वह वेश्यागामी है, तो करेगा क्या रुपयों का ! वह वेश्या के यहां चला जाएगा।
मैंने सुना है : : एक चर्च में एक परिवार कभी नहीं आता था। तो चर्च की महिलाओं की समिति थी, उनको बड़ी चिंता हुई । वे सारी महिलाएं उनके पास गयीं कि तुम कभी चर्च नहीं आते ! उन्होंने कहा: हम कैसे आएं ! हमारे पास एक ही जोड़ी कपड़े हैं। इन्हीं को हम बाजार में पहनते, इन्हीं को हम काम में पहनते । ये फट भी गए, पुराने भी हो गए। चर्च में इनको पहनकर, इस गंदगी को लेकर कहां आएं ! हमारे पास दूसरी जोड़ी कपड़े नहीं हैं।
उन महिलाओं को बड़ी दया आयी। उन्होंने जल्दी से पैसा इकट्ठा किया सब ने । बाजार गयीं। अच्छे वस्त्र उनके लिए खरीदकर लायीं। पूरे परिवार के लिए। पत्नी, बच्चे, पति...। और दूसरे रविवार को उन्होंने बड़ी प्रतीक्षा की चर्च में, लेकिन वे नहीं आए। बड़ी चकित हुईं। वापस उनके घर पहुंचीं। पूछा कि आए क्यों नहीं ?
उन्होंने कहा कि कपड़े पहनकर हमने जब आईने में अपने चेहरे देखे, तो इतने सुंदर मालूम पड़े कि हम सिनेमा चले गए! ऐसे जंच रहे थे कि हमने सोचा कि चर्च में क्या सार! चर्च में जाने से होगा भी क्या ? कुछ पैसे भी आप लोग छोड़ गयी थीं, तो सिनेमा के बाद हम होटल चले गए। उसी में सब समय समाप्त हो गया ! तुम जिसको दे रहे हो, वह क्या करेगा, इसकी थोड़ी सदबुद्धि चाहिए।
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