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________________ एस धम्मो सनंतनो 'लोगों का दोष है राग, इसलिए वीतराग लोगों को दान देने में महाफल है।' जरा अतीत हो गया हो, जिसकी कोई कामवासना न रही हो, जिसके मन में कोई लोभ न रहा हो, अगर उसकी भूमि में तुम अपने दान का बीज डाल दोगे, तो महाफल होगा, आंतरिक फल होगा। 'खेतों का दोष घास-पात, प्रजा का दोष द्वेष ... ।' अगर तुम किसी हत्यारे को पैसा दे दोगे, तो वह करेगा क्या? वह बंदूक खरीद लेगा। वह किसी की हत्या कर देगा। मैंने सुना है कि एक अंधा और एक लंगड़ा साथ - साथ रहते थे। तुमने कहानी सुनी होगी। जंगल में जब आग लग गयी थी, तो उन दोनों ने एक-दूसरे को सहारा दिया और जंगल से बाहर आ गए। क्योंकि लंगड़ा चल नहीं सकता था, देख सकता था। अंधा देख नहीं सकता था, चल सकता था। दोनों जुड़ गए। अंधे ने लंगड़े को कंधे पर ले लिया। तो लंगड़ा देखता रहा, अंधा चलता रहा। दोनों आग से बाहर निकल आए। लेकिन बाहर आकर उनमें झगड़ा हो गया। अक्सर ऐसा हो जाता है। आग से बाहर आकर झगड़ा होता है। क्योंकि वे यह कहने लगे कि मैंने बचाया तुझे। वह कहने लगा: मैंने बचाया तुझे। मैं आ गया बीच में। मार-पीट हो गयी। पुरानी कहानी है। उन दिनों ईश्वर देखता रहता था ऊपर से कि कहां क्या हो रहा है! अब तो थक गया, ऊब गया। और अंधे-लंगड़ों को कब तक देखता रहे! उसे बड़ी दया आयी ! उसने कहा कि इन दोनों को ठीक कर दूं जाकर । आया। दोनों नाराज होकर एक-दूसरे से अलग-अलग झाड़ों के नीचे बैठे थे । विचार कर रहे थे कि किस तरह ! अंधा सोच रहा था कि इस लंगड़े की आंखें किस तरह फोड़ दूं। बड़ी अकड़ बनाए हुए है आंखों की । और लंगड़ा सोच रहा था कि इस अंधे की टांग कैसे तोड़ दूं । तभी ईश्वर आया। उसने पूछा पहले को। उसने सोचा कि जब मैं अंधे से पूछूंगा कि तू कोई एक वरदान मांग ले, तो वह मांगेगा वरदान कि मेरी आंखें ठीक कर दो। जब उसने अंधे से कहा कि तू एक वरदान मांग ले। तो अंधे ने कहा कि हे प्रभु! जब दे ही रहे हो - इतना दिल दिखा रहे हो – तो एक काम करो : इस लंगड़े की आंखें फोड़ दो। और यही लंगड़े ने भी किया। ईश्वर तो बहुत चौंका। तभी से तो आता नहीं कि ये अंधे-लंगड़े बड़े खतरनाक हैं। लंगड़े से पूछा । सोचता था यही कि कम से कम यह बुद्धिमानी दिखाएगा; अपने पैर ठीक करवा लेगा। लेकिन उसने कहा कि जब आ ही गए आप, और यही तो मैं सोच रहा था; जन्मों-जन्मों की आशा मेरी पूरी कर दी। तो अब इतना कर दो कि इस अंधे की टांगें तोड़ दो! 242
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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