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________________ एस धम्मो सनंतनो है। क्षुद्र में कोई मुक्ति नहीं है। यह आत्मघात है। जिसको तुम जीवन कहते हो, यह आत्मघात है; रोज-रोज मरते जाते हो। एक-एक दिन बीतता और जीवन कम होता जाता है। जितने दिन बीत गए, उतने अवसर बीत गए। उतने दिन बीत गए, जिनमें तुम स्वयं को उपलब्ध हो सकते थे, जिनमें परमात्मा का साक्षात हो सकता था, जिनमें शून्य घट सकता था, पूर्ण घट सकता था—उतने अवसर बीत गए। मगर मैं यह नहीं कह रहा हूं कि जो बीत गए दिन, उनके लिए बैठकर रोओ अब। अब जो बीत गए, सो बीत गए। अब रोने में इसको भी मत गंवा देना। __और सुबह का भूला सांझ भी घर आ जाए, तो भूला नहीं है; भूला नहीं कहाता है। और सदा समय है। अगर एक पल भी बाकी है तुम्हारे जीवन का...और निश्चित ही अभी जीवित हो, तो यह पल तो है ही। आने वाले पल की कोई बात नहीं, यह पल तो तुम्हारे हाथ में है। यह पल भी अगर तुम पूरी त्वरा से अपने को देख लो, तो रूपांतरण का पल हो जाए। __एक क्षण में संसार मिट सकता है और परमात्मा सामने हो सकता है। गहन तीव्रता चाहिए, उत्तप्तता चाहिए, सब दांव पर लगाने की क्षमता चाहिए। दूसरी परिस्थितिः भगवान के तातविंस भवन में पांडुकमल शिलासन पर बैठे समय, देवताओं में यह चर्चा चली-कि इंदक के अपने लिए लाए भोजन में से कलछीभर अनुरुद्ध स्थविर को दिया दान का फल, अंकुर के दस हजार वर्ष तक बारह योजन तक चूल्हों की कतार बनवाकर दिए हुए दान से भी महाफल का हुआ। यह कैसा गणित है? इसके पीछे तर्क-सरणी क्या है? इसे सुनकर शास्ता ने अंकुर से कहा : अंकुर ! दान चुनकर देना चाहिए। ऐसा करने से वह अच्छे खेत में भली प्रकार बोए हुए बीज के सदृश्य महाफल होता है। किंतु तूने वैसा नहीं किया, इसलिए तेरा दान महाफल नहीं हुआ। दान ही सब कुछ नहीं है, जिसे दिया, वह भी अति महत्वपूर्ण है। और जिस भावदशा से दिया, वह भी अति महत्वपूर्ण है। और तब उन्होंने ये गाथाएं कहीं: तिणदोसानि खेत्तानि रागदोसा अयं पजा। तस्मा हि वीतरागेसु दिन्नं होति महप्फलं ।। तिणदोसानि खेत्तानि दोसदोसा अयं पजा। तस्मा हि वीतदोसेसु दिन्नं होति महप्फलं ।। . तिणदोसानि खेत्तानि मोहदोसा अयं पजा। तस्मा हि वीतमोहेसु दिन्नं होति महप्फलं ।। 236
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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