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धर्म का सार-बांटना
फिर भी बुद्ध ने सीधा नहीं कहा। फिर भी बुद्ध ने परोक्ष ही कहा। बुद्ध ने फिर भी सत्य ही कहा, लेकिन उस सत्य को व्यक्ति-सूचक नहीं बनाया। सिर्फ इतना ही कहा : ऐसे ही महाराज! बुद्धिहीन पुरुष धन-संपत्ति पाकर भी निर्वाण की तलाश नहीं करते हैं।
जिनके पास धन-संपत्ति नहीं है, जिनके पास भोजन नहीं है, कपड़े नहीं, छप्पर नहीं, अगर वे निर्वाण की तलाश न करें, उन्हें क्षमा किया जा सकता है। क्योंकि अभी उनके जीवन की छोटी-छोटी समस्याएं ही इतनी बड़ी हैं, उनको ही नहीं सुलझा पा रहे हैं। लेकिन जिनके पास सब है, जिन्हें अब कोई उलझाव नहीं रहा है, वे भी अगर सत्य की तलाश न करते हों, तो उन्हें क्षमा नहीं किया जा सकता। ___अगर गरीब धार्मिक न हो, क्षम्य है। अगर अमीर धार्मिक न हो, तो बुद्ध है, क्षम्य नहीं है। तो जड़ है। मंद है। अगर गरीब धार्मिक हो, तो महाबुद्धिशाली है।
और अगर अमीर धार्मिक हो, तो होना ही चाहिए; इसमें कुछ महाबुद्धिशाली होने की बात नहीं है।
. इन सत्यों को खयाल में रखना। जब तुम्हारे पास सब सुविधा हो, जब तुम घड़ीभर शांत बैठ सकते हो द्वार बंद करके, संसार को भूलने की सुविधा हो तुम्हें घड़ीभर के लिए, तो भूलना। क्योंकि उसी भूलने से तुम्हें परमात्मा की सुधि आनी शुरू होगी; सुरति जगेगी। - बुद्ध ने कहा : हां महाराज! ऐसा ही हाल है। और हंसे। शायद कौशल नरेश ने उनके हंसने का भी यही अर्थ लगाया होगा कि हंस रहे हैं उस दुर्बुद्धि निःसंतान श्रेष्ठी के लिए। फिर भी शायद न सोचा होगा कि यह हंसने का तीर कौशल नरेश की तरफ है।
आदमी अपने को बचा लेता है। बच जाता है। तीर आता है, तो इधर सरक जाता, उधर सरक जाता। तीर को निकल जाने देता है।
यह तीर सीधा था। बुद्ध ने हंसकर जो कहना था, कहा था। देखकर हंसे होंगे कि कैसी दुर्दशा है मनुष्य की! यह दूसरे की भूलें देख रहा है और उन्हीं भूलों में खुद पड़ा है!
धन-सपंत्ति के कारण उत्पन्न तृष्णा अनंतकाल तक स्वयं का हनन करती है।
'संसार को पार होने की कोशिश नहीं करने वाले दुर्बुद्धि मनुष्य को भोग नष्ट करते हैं। भोग़ की तृष्णा में पड़कर वह दुर्बुद्धि पराए की तरह अपना ही घात करता
तुम ध्यान रखना ः जो व्यक्ति ध्यान नहीं कर रहा है, वह जाने-अनजाने आत्मघात कर रहा है। क्योंकि जो ध्यान नहीं कर रहा है, वह आत्मा को न पा सकेगा। जो ध्यान नहीं कर रहा है, वह मरणधर्मा में उलझा रहेगा। और मरणधर्मा में जीवन का सार नहीं है। वह क्षुद्र में ही लगा रहेगा। और क्षुद्र में कोई आनंद नहीं
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