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एस धम्मो सनंतनो
तो उसने पूरी ले ही ली थी। वे किसी तरह अपने को सम्हाले थे दोनों कोनों पर। गिरे-अब गिरे, तब गिरे! बस जरा हिलती-कि गिरे।
फिर विनोद ने धीरे से कहा, बहनजी! टेहुनी तो न मारो। मगर उसने सुना ही नहीं। फिर विजयानंद ने भी हिम्मत बांधी और कहा, बहनजी! जरा जोर से कहा, टेहुनी तो न मारो। मगर उसने वह भी न सुना। तब जरा विनोद को क्रोध भी आ गया। उसने कहा कि सुनती हैं कि नहीं बहनजी! टेहुनी न मारो। तो टुनटुन ने कहा : अरे, हद्द हो गयी। क्या श्वास लेना भी जुर्म है!
वह तो बेचारी सिर्फ श्वास ले रही है। लेकिन अब मोटी महिला! श्वास ले, तो दूसरे समझ रहे हैं कि टेहुनी मार रही है।
ऐसी भूल रोज होती है। आदमी अपने भीतर अपना मनोभाव देखता है। दूसरा व्यक्ति उसके बाहर क्या कृत्य घट रहा है, वह देखता है। इसलिए कोई किसी को समझ नहीं पाता।
यह कौशल नरेश उसका कृत्य तो देख रहा है, उसका मनोभाव नहीं देखा। कैसे देखे? अपना मनोभाव देख रहा है; अपना कृत्य नहीं देख रहा है। कैसे देखे?
जो अपना कृत्य देखने लगे और दूसरों के मनोभाव देखने लगे, वही बुद्धत्व को उपलब्ध है। फिर उससे भूल नहीं होती। फिर किसी को समझने में उससे भूल नहीं होती।
शास्ता हंसे और बोले...। इसलिए बद्ध हंसे, यह देखकर कौशल नरेश की बात, कि यह दया खा रहा है उस गरीब पर, जो मर गया है। इसे दया अपने पर नहीं आ रही! यह सोच रहा है कि उसने कैसा महापाप किया। लेकिन यह अपने बाबत जरा भी विचार नहीं कर रहा है।
असल में हम दूसरों के संबंध में इसलिए विचार करते हैं, ताकि हम अपने संबंध में विचार करने से बच जाएं।
हम सोचते ही रहते हैं दूसरों के संबंध में! तुमने कभी अपने संबंध में सोचा? कभी घड़ी आधा घड़ी बैठकर तुमने कभी अपने संबंध में सोचा? जब तुम घड़ी आधा घड़ी बैठते हो शांत, तब भी तुम दूसरों के संबंध में सोचते हो! पड़ोसियों के संबंध में, अखबार में छपी खबरें, फिल्मों में देखी कहानियां, रेडियो पर सुने गीत-वही गूंजते रहते हैं। और तुम उसी विचार में तल्लीन रहते हो!
दूसरा महत्वपूर्ण नहीं है। पहले अपने में तो जाग लो, अपने को तो देख लो! पहले दर्पण अपने चेहरे के सामने करो; उससे ही क्रांति की शुरुआत है, उससे ही धर्म का प्रारंभ है।
इसलिए शास्ता हंसे और बोले : ऐसे ही महाराज! बुद्धिहीन पुरुष धन-संपत्ति पाकर भी निर्वाण की तलाश नहीं करते हैं। और धन-संपत्ति के कारण उत्पन्न तृष्णा उनका दीर्घकाल तक हनन करती है।
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