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तिणदोसानि खेत्तानि इच्छादोसा अयं पजा । तस्मा हि विगतिच्छेसु दिन्नं होति महफ्फलं ।।
धर्म का सार - बांटना
‘खेतों का दोष है घास-पात, खेतों का दोष है तृण, इसी तरह प्रजा का दोष है राग । इसलिए वीतराग लोगों को दान देने में महाफल होता है।'
'खेतों का दोष है तृण, इसी प्रकार प्रजा का दोष है द्वेष । इसलिए वीतद्वेष व्यक्तियों को दान देने में महाफल होता है।'
'खेतों का दोष है तृण, इस प्रजा का दोष है मोह | इसलिए वीतमोह व्यक्तियों को दान देने में महाफल होता है । '
'खेतों का दोष है तृण, इस प्रजा का दोष है इच्छा । इसलिए विगतेच्छ व्यक्तियों को दान देने में महाफल होता है।'
पहले तो परिस्थिति को खूब हृदयंगम कर लें। यह कथा थोड़ी अनूठी है। इस कथा में दो दृश्य हैं। इस एक दृश्य में दो दृश्य समाए हैं ।
पहला ः भगवान तो अपने भिक्षुओं के पास बैठे हैं । भिक्षुओं ने उन्हें घेरा हुआ है। उनके सामने ही एक महादानी अंकुर नाम का व्यक्ति बैठा हुआ है, उसने अपूर्व दान किया है। उसका दान ऐसा है कि इतिहास में खोजे से न मिले। उसने ऐसा दान किया है : दस हजार वर्ष तक – जन्मों-जन्मों से वह दान कर रहा है- बारह योजन तक चूल्हों की कतार बनवाकर दान देता रहा है निरंतर ।
जितना दिया है, उतना उसे और मिला है। लेकिन हर बार जितना मिला है, वह भी उसने दे दिया है। ऐसे उसका धन भी बढ़ता गया, उसका दान भी बढ़ता गया । जितना दान बढ़ा है, उतना धन बढ़ा। जितना धन बढ़ा, उतना उसने दान बढ़ाया है। ऐसे दस हजार सालों में उसकी सारी जीवन-यात्रा दान की महाकथा है। बारह योजन तक चूल्हों को बनवा रखा है उसने । और उसमें जो भी तैयार होता है रोज भोजन, वह दान करता है। लाखों लोगों को भोजन देता है, कपड़े देता है ।
वह अंकुर महाश्रेष्ठी सामने ही बुद्ध के बैठा है ।
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ऊपर आकाश में देवताओं की बैठक हो रही है । वे देवता आपस में सोचते हैं कि एक बड़ी अजीब बात है । यह अंकुर बैठा है बुद्ध के सामने। इसने इतना दान दिया है। लेकिन हमने सुना है कि एक छोटे से दान के सामने भी इसका दान कुछ नहीं है। वह दान किया था इंदक नाम के आदमी ने ।
वह इंदक भी वहां बुद्ध के पास मौजूद है। कहीं पीछे बैठा होगा। क्योंकि वह महाश्रेष्ठी नहीं है। उसको कोई जानता भी नहीं है । उसका दान भी ऐसा नहीं है कि उसकी कोई प्रशंसा करे । उसने दान दिया था अनुरुद्ध नाम के एक बूढ़े भिक्षु को—स्थविर अनुरुद्ध को । वे बुद्ध के खास शिष्यों में एक थे, जो बुद्ध के सामने ही बुद्धत्व को उपलब्ध हुए ।
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