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________________ धर्म का सार-बांटना आज के सूत्र दान पर हैं, इन्हें ठीक से समझना। इसके पहले कि हम सूत्रों में चलें, उन परिस्थितियों को समझ लें, जिनमें ये सूत्र बुद्ध ने कहे थे। पहला दृश्यः श्रावस्ती के एक अपुत्रक श्रेष्ठी के मर जाने के बाद कौशल नरेश ने सात दिन तक उसके धन को गाड़ियों में दुलवाकर राजमहल में मंगवाया। इन सात दिनों तक धन ढुलवाने में वह इस तरह उलझा कि भगवान के पास एक दिन भी न जा सका। वैसे साधारणतः वह नियम से प्रतिदिन प्रातःकाल भगवान के दर्शन और सत्संग के लिए आता था। जिस दिन धन ढुलवाने का कार्य पूरा हुआ, उस दिन उसे भगवान की याद आयी, सो वह भरी दुपहरी में ही भगवान के पास जा पहुंचा।। भगवान ने उससे दोपहर में आने का कारण पूछा। राजा ने सब समाचार बताए और फिर पूछा : भंते! एक बात मेरे मन को मथे डालती है। उस अपुत्रक श्रेष्ठी के पास इतना धन था कि मुझे सात दिन लग गए गाड़ियों में ढुलवाते-ढुलवाते, तब बामुश्किल उसके धन को राजमहल ला पाया हूं। फिर भी वह रूखा-सूखा खाता था! फटा-पुराना पहनता था! और टूटे हुए जराजीर्ण रथों पर चलता था! इसे सुनकर भगवान ने कहाः महाराज! वह पूर्वकाल में तगरशिखी बुद्ध को दान दिया था। दान तो कुछ बड़ा नहीं दिया था। बड़े दान देने की उसकी क्षमता नहीं थी। दान तो बड़ा क्षुद्र दिया था। लेकिन क्षुद्र दान का विराट परिणाम हुआ। उस दान के फलस्वरूप उसे इतनी धन-संपत्ति इस जीवन में मिली। दान तो उसने थोड़ा ही दिया था, पर दान देकर पीछे पछताया बहुत था कि यह भी क्या भूल कर ली! यह भी किन बातों में आ गया! उस पछतावे के कारण उसका मन अच्छा खाने-पहनने में नहीं लगता था। वह पछतावा पीछा कर रहा था। उस पछतावे के कारण रुपया हाथ से छोड़ने की उसकी क्षमता ही विलीन हो गयी थी। दान देना तो दूर, अपने उपयोग के लिए भी धन को व्यय करने की उसकी क्षमता खो गयी थी। उस दान को देने से दो परिणाम हुए थे: एक परिणाम हुआ था कि दिया, तो बहुत उसके उत्तर में मिला। और देकर पछताया बहुत, तो उसका जीवन अत्यंत कृपणता से भर गया। इतना कि खुद भी खा नहीं सकता था, कपड़े नहीं पहन सकता था। महाकंजूस हो गया-पछतावे के कारण! इसने संपत्ति के लिए ही अपने भाई के मरने पर उसके इकलौते बेटे को भी जंगल में ले जाकर मार डाला था। जिसके फलस्वरूप उसे स्वयं संतान पैदा नहीं हुई। उसके बांझ रह जाने का यही मूल कारण था। इस समय मरकर वह महा रौरव नरक में उत्पन्न हुआ है। क्योंकि पुराना किया 219
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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