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एस धम्मो सनंतनो
समर्थ हो, इससे होता है कोई। मांगने वाला भिखमंगा रह जाता है।
और ध्यान रखना : धनी से धनी आदमी भी मांग रहा है। गरीब ही मांग रहा है, ऐसा नहीं; धनी भी मांग रहा है। अमीर से अमीर, अरबपति भी मांग रहा है। कहता है: और मिल जाए, और मिल जाए। ___ इसलिए इस दुनिया में भिखमंगे ही भिखमंगे हैं। गरीब भिखमंगे हैं, अमीर भिखमंगे हैं। मगर सब भिखमंगे हैं। यहां कभी-कभी कोई सम्राट होता है। सम्राट वही होता है, जो मांग नहीं रहा है; जिसने बांटना शुरू कर दिया है। बांटने से साम्राज्य का विस्तार है। ___ ऐसा अहेतुक दान तभी संभव है, जब तुम्हारे जीवन में प्रेम की थोड़ी सुवास हो। इसलिए मैंने कहा : धर्म का सार है दान। और दान का मूल है प्रेम।
प्रेम का अर्थ होता है : मैं अलग नहीं। मैं भिन्न नहीं, पृथक नहीं। मैं सब से जुड़ा हूं। तो अगर कहीं कोई पीड़ा में है, तो मैं दौड़ता हूं, क्योंकि मैं ही पीड़ा में हूं। __ अगर वृक्ष सूख रहा है जल के बिना, और मैं जल देता हूं, तो इसीलिए कि वृक्ष में मैं ही सूख रहा हूं। अगर कोई रो रहा है, और मैं आंसू पोंछता हूं, तो सिर्फ इसीलिए कि वे आंसू मेरे ही आंसू हैं; वे आंखें मेरी ही आंखें हैं। इस भाव का नाम प्रेम है।
प्रेम का अर्थ है : मैं अस्तित्व से भिन्न नहीं हूं-अभिन्न हूं, एक हूं। प्रेम का अर्थ है : अद्वैत की प्रतीति।। ___ हम अलग हो भी कहां सकते हैं। प्रतिपल श्वास चाहिए, भोजन चाहिए, जल चाहिए, तो ही जी सकते हैं। और यह सब मिलता है हमें बाहर से, अस्तित्व से।
वृक्षों में फल लग रहे हैं, वे तुम्हारे लिए तैयार हो रहे हैं कि तुम उन्हें पचाओगे। वे तुम्हारा रक्त-मांस-मज्जा बनेंगे। नदियों में जलधार बह रही है कि तुम्हारे वृक्षों में पानी जाएगा, फल पकेंगे। और नदियों में जलधार तुम्हारे घर तक आ रही है कि तुम्हारी प्यास होगी, और प्यास के लिए पानी की जरूरत होगी। और आकाश में बादल मंडरा रहे हैं, और वर्षा हो रही है तुम्हारे लिए। और सुबह सूरज निकला है-तुम्हारे लिए। और रात चांद-तारों से भर जाता है आकाश-तुम्हारे लिए-कि तुम अब विश्राम में चले जाओ।
जरा गौर से देखो, यह सब तुम्हारे लिए है। यह सब तुम्हारे लिए है और तुम इसके लिए नहीं हो–यह अप्रेम है। यह धोखा हुआ। यह बेईमानी है। यह सब तुम्हारे लिए हो रहा है और तुम इसके लिए बिलकुल नहीं! ____ जिस दिन तुम्हें यह दिखायी पड़ता है : यह सारा अस्तित्व मेरे लिए; उस दिन तुम पूरे भाव से कहते हो : मैं भी इस सारे के लिए। तब प्रेम। और प्रेम मूल है दान का। __ धर्म का सार है दान। दान का मूल है प्रेम। और प्रेम का अर्थ है, निरअहंकारिता। यह धर्म का, दान का, शास्त्र हुआ। निरअहंकारिता पर ही दान खड़ा होगा। अगर देने में जरा भी अहंकार है, तो चूक गए; फिर प्रेम नहीं है।
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