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________________ तृष्णा की जड़ वचन सुने। और फिर मछली को बोलते देखा! और यही नहीं, फिर मछली को मरते देखा और रूपांतरित होते देखा! मृत्यु जैसे समाधि बन गयी। और यह भी देखा चमत्कार कि जीते-जी दुर्गंध से भरी थी, मरते दुर्गध विदा हो गयी! इतना ही नहीं, जैसे ही पुरानी दुर्गंध धीरे-धीरे हवा के झोंके ले गए, उस मरी हुई मछली से सुगंध आने लगी। जेतवन, जैसे पहले दुर्गंध से भर गया था, वैसे ही एक अपूर्व सुगंध से भर गया! वे भिक्षु पहचानते थे भलीभांति-वह सुगंध कैसी है। वह बुद्धत्व की सुगंध थी-जैसे बुद्ध से आती है। ___ मछली उपलब्ध होकर मरी। एक क्षण में क्रांति घटी। क्रांति जब घटती है, तो क्षण में घट जाती है। बोध की बात है। सन्नाटा छा गया। बड़ी देर तक कोई कुछ नहीं बोला। लोग संविग्न हो गए। उन्हें रोमांच हो आया। तब भगवान ने उस समय उपस्थित लोगों की चित्त-दशा को देखकर यह गाथाएं कहीं। इसके पहले कि हम गाथाओं में जाएं, इस कथा के एक-एक शब्द को हृदय में उतर जाने दो। समझो। भगवान गौतम बुद्ध श्रावस्ती के जेतवन में विहरते थे। गौतम उनका नाम था, उनके माता-पिता ने दिया था। बुद्धत्व उनकी उपलब्धि थी. क्योंकि वे निद्रा से जागे। अंधेरे से प्रकाश बने। मूर्छा गयी, होश आया। दीया जला भीतर का। सो बुद्ध उन्हें कहते हैं। और जो भी जाग गया, वह भगवान हो गया। बुद्ध परंपरा में भगवान का वैसा अर्थ नहीं है, जैसा हिंदू या इस्लाम या ईसाई परंपरा में है। हिंदू, ईसाई, इस्लाम की परंपरा में भगवान का अर्थ होता है : जिसने सृष्टि को बनाया। बुद्ध परंपरा में भगवान का अर्थ होता है : जिसने स्वयं को जाना। क्योंकि बुद्ध परंपरा में इस संसार को बनाने वाला तो कोई है ही नहीं। यह संसार कभी बनाया नहीं गया। यह असृष्ट है। यह सदा से है। और यही बात ज्यादा संगत मालूम पड़ती है। • तुम देखते होः संसार एक वर्तुल में घूम रहा है। बीज बोते हो, वृक्ष बन जाते हैं। वृक्षों में फिर बीज लग जाते हैं। फिर बीज बो दो, फिर वृक्ष बन जाते हैं। वृक्षों में फिर बीज लग जाते हैं। तुम ऐसी कोई घड़ी सोच नहीं सकते, जब यह वर्तुल न रहा हो। तुम ऐसा नहीं सोच सकते कि बीज हो जाएं। बिना वृक्षों के बीज न हो सकेंगे। और तुम ऐसा भी नहीं सोच सकते कि अचानक वृक्ष हो जाएं। सृष्टि का तो अर्थ ही यही होगा कि भगवान ने या तो बीज बनाए या वृक्ष बनाए। कहीं से तो शुरू करना होगा! लेकिन वृक्ष बिना बीज के नहीं हो सकते। और बीज बिना वृक्ष के नहीं हो सकते। यह वर्तुल तोड़ा नहीं जा सकता! __ बच्चे बिना मां-बाप के नहीं हो सकते। और जो मां-बाप हैं, वे भी किसी के बच्चे हैं। यह वर्तुल तोड़ा नहीं जा सकता। यह परंपरा शाश्वत है, सनातन है। इसको
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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