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मैं न पाती विश्व में छा ।
मैं न पाती आज कुछ गा ।
सांद्रतम है
दूर तक
फैला हुआ पथ विराना
है
आंधियों के बीच जलते
दीप का कब क्या
ठिकाना !
सजल सांसों की डगर पर
चल रही है जिंदगानी
और तारों में न जाने बोलती किसकी कहानी ?
आज तूफानी अमा में
जब न कोई साथ मेरे खोजते फिरते न जाने,
अब सहारा प्राण किसका ?
मैं न पाती आज कुछ गा । गान मेरे
'जो कभी तट आस्मां का चूमते थे मौन का
कण-कण मुखर करते हवा में
जो कभी थे जागरण जग में जगाते थे सबेरा
बन गए हैं आज वे ही
विगत सपनों का बसेरा हो सका साकार कब संसार
सपनों का किसी का ?
आज सपनों के सहारे,
मैं न पाती विश्व में छा । मैं न पाती आज कुछ गा ।
दर्पण बन
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