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एस धम्मो सनंतनो
गंधायित दर्पण के धूप-रंग धुले सारे होने लगे स्वयं नीलाभ अंधेरा मन हुआ
कमरे में घुस आयी शाम एक न एक दिन शाम आएगी। जितने जल्दी आ जाए, उतना अच्छा। क्योंकि ये सबेरे जो तुम्हें दिखायी पड़ रहे हैं आशाओं के, सब झूठे सबेरे हैं। ये सबेरे, जिनमें तुम भरमे हो, भटके हो, सब मृग-मरीचिकाएं हैं। __ तुम्हारे जीवन की संध्या आ गयी; निराशा आ गयी। तुम्हारे अंतस कक्ष में शाम घुस आयी। डरो मत। वे झूठे सबेरे बुझ जाएं, यही शुभ है। उनके बुझने के बाद तुम अचानक पाओगे, शाम भी बुझ गयी।
तुम्हें अड़चन होगी, क्योंकि अब तक तुम आशाओं के सहारे चले। आशाओं ने उत्साह दिया, उमंग दी। आशाओं ने सपने दिए, गीत दिए। आशाओं के कारण तुम्हारे जीवन में अर्थ रहा। अब तुम अचानक पाओगेः व्यर्थ हो गए। अब तुम अचानक पाओगेः सब अर्थ खो गया, रिक्त-रिक्त, खाली-खाली। .
ऐसे ही जैसे कोई पत्थर को हीरा समझता था; मुट्ठी भरी थी। अब आज अचानक दिखा कि पत्थर है; मुट्ठी खाली हो गयी। और जिंदगीभर मुट्ठी भरी रही और आज खाली हो गयी! बहुत खालीपन लगेगा। बहुत रिक्तता लगेगी।
मैं न पाती आज कुछ गा। गान मेरे जो कभी तट आस्मां का चूमते थे मौन का कण-कण मुखर करते
हवा में
झूमते थे जो कभी थे जागरण जग में जगाते थे सबेरा बन गए हैं आज वे ही विगत सपनों का बसेरा हो सका साकार कब संसार सपनों का किसी का? आज सपनों के सहारे,
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