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दर्पण बनो
बैसाखी पर चलने की बजाय, घिसटना शुभ है। क्योंकि घसिटने में कम से कम स्वयं की निजता तो है। घुटने छिलेंगे। तुम पर नाराज भी होगा कि तुमने बैसाखियां क्यों छीन लीं! सब मजे से चल रहा था। फिर उठेगा। कई बार गिरेगा, घुटने टूटेंगे। लेकिन एक दिन पैर पुनरुज्जीवित हो उठेगे। फिर उनमें ऊर्जा बहेगी। जैसे कि बहनी चाहिए थी पहले ही। नहीं बह पायी। क्योंकि मां-बाप, समाज, संस्कार–इन सब ने मार डाला।
यहां मेरा काम यही है कि तुम्हारी बैसाखियां छीन लूं। इसलिए जिनको बैसाखियों से बहुत मोह है, वे यहां नहीं आते। जिनको बैसाखियों से बहुत मोह है, वे तो मुझे शत्रु मानते हैं। जो बैसाखियों को ही अपने पैर समझ बैठे हैं, वे तो कहते हैं : मैं बहुत खतरनाक आदमी हूं। मैं लोगों को लंगड़ा बना रहा हूं। क्योंकि बैसाखियां पैर हैं। मैं बैसाखियां छीन लेता हूं, लोग लंगड़े हो जाते हैं।
जिन्होंने चश्मों को आंख समझ रखा है, वे कहते हैं, मैं लोगों को अंधा बना रहा हूं, क्योंकि मैं उनके चश्मे छीन रहा हूं। जिन्होंने शास्त्रों को सत्य समझ रखा है, वे सोचते हैं कि मैं लोगों को भटका रहा हूं, क्योंकि उनके शास्त्र छीन रहा हूं। जिनमें हिम्मत है, वही मुझे समझ पाएंगे।
आशा मत मांगो। सहारा मत मांगो। मैं तुम्हें तुम्हारे सहारे पर खड़ा करना चाहता हूं। और इसके लिए जरूरी है कि तुम सब तरह से बेसहारा हो जाओ, तभी तुम खड़े हो पाओगे। नहीं तो तुम खड़े नहीं हो पाओगे।
और एक न एक दिन निराशा आएगी ही, क्योंकि वह आशा का परिणाम है। आ गयी-अच्छा।
गगन से उतर आयी शाम अंधेरा वन हुआ अनचीन्ही पीड़ा से भर गया कोना-कोना अंजुरी से झर गया खिला-खिला रूप सलोना सुधियों ने भेजे पैगाम सबेरा तन हुआ कमरे में घुस आयी शाम खड़े-खड़े गुमसुम से सोचते से गलियारे
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