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________________ दर्पण बनो यह सामान्य गुरु है। इसकी बड़ी भीड़ है। और यह जमता भी है। साधारण बुद्धि के आदमी को यह बात जमती है। क्योंकि बिना सिखाए कैसे सीखेंगे? भाषा भी सीखते, तो स्कूल जाते। गणित सीखते, तो किसी गुरु के पास सीखते। भूगोल, इतिहास, कुछ भी सीखते हैं, तो किसी से सीखते हैं। तो परमात्मा भी किसी से सीखना होगा। यह बड़ा सामान्य तर्क है-थोथा, ओछा, छिछला–मगर समझ में आता है आम आदमी के कि बिना सीखे कैसे सीखोगे। सीखना तो पड़ेगा ही। कोई न कोई सिखाएगा, तभी सीखोगे। __इसलिए निन्यानबे प्रतिशत लोग ऐसे गुरु के पास जाते हैं, जो कहता है, गुरु के बिना नहीं होगा। और स्वभावतः जो कहता है गुरु के बिना नहीं होगा, वह परोक्षरूप से यह कहता है: मुझे गुरु बनाओ। गुरु के बिना होगा नहीं। और कोई गुरु ठीक है नहीं। तो मैं ही बचा। अब तुम मुझे गुरु बनाओ! दूसरे तरह का गुरु भी होता है। जैसे कृष्णमूर्ति हैं। वे कहते हैं : गुरु हो ही नहीं सकता। गुरु करने में ही भूल है। जैसे एक कहता है: गुरु बिन नाही ज्ञान। वैसे कृष्णमूर्ति कहते हैं : गुरु संग नाहीं ज्ञान! गुरु से बचना। गुरु से बच गए, तो ज्ञान हो जाएगा। गुरु में उलझ गए, तो ज्ञान कभी नहीं होगा। सौ में बहुमत, निन्यानबे प्रतिशत लोगों को पहली बात जमती है। क्योंकि सीधी-साफ है। थोड़े से अल्पमत को दूसरी बात जमती है। क्योंकि अहंकार के बड़े पक्ष में है। ____ तो जिनको हम कहते हैं बौद्धिक लोग, इंटेलिजेन्सिया, उनको दूसरी बात जमती है। पहले सीधे-सादे लोग, सामान्यजन, उनको पहली बात जमती है। जो अत्यंत बुद्धिमान हैं, जिन्होंने खूब पढ़ा-लिखा है, सोचा है, चिंतन को निखारा-मांजा है, उन्हें दूसरी बात जमती है। क्योंकि उनको अड़चन होती है किसी को गुरु बनाने में। कोई उनसे ऊपर रहे, यह बात उन्हें कष्ट देती है। कृष्णमूर्ति जैसे व्यक्ति को सुनकर वे कहते हैं : अहा! यही बात सच है। तो किसी को गुरु बनाने की कोई जरूरत नहीं है। किसी के सामने झुकने की कोई जरूरत नहीं है। उनके अहंकार को इससे पोषण मिलता है। अब तुम फर्क समझना। पहला जिस आदमी ने कहा कि गुरु बिन ज्ञान नाहीं; और उसने यह भी समझाया कि और सब गुरु तो मिथ्या; सदगुरु मैं। और इसी तरह, मिथ्यागुरु जिनको वह कह रहा है, वे भी कह रहे हैं कि और सब मिथ्या; ठीक मैं। तो गुरु के बिना ज्ञान नहीं हो सकता है इस बात का शोषण गुरुओं ने किया गुलामी पैदा करने के लिए; लोगों को गुलाम बना लेने के लिए। सारी दुनिया इस तरह गुलाम हो गयी। कोई हिंदू है; कोई मुसलमान है; कोई ईसाई है; कोई जैन है। ये सब गुलामी के नाम हैं। अलग-अलग नाम! अलग-अलग रंग-ढंग! 179
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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