SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो जम गयी हैं। गुरु कहता है : धूल को पोंछ दो। दर्पण भीतर मौजूद है। दर्पण कहीं से लाना नहीं है। तो इसलिए बुद्ध कहते हैं : किसको सिखाऊं? किसको गुरु बनाऊं? और तुम्हारा प्रश्न भी संगत है। तुम पूछते हो : 'फिर भी उन्होंने चालीस वर्षों तक लाखों लोगों को दीक्षित किया और सिखाया भी!' यह भी सच है। तुम्हारा प्रश्न संगत है। और तुम्हें बड़ी उलझन में डालेगा। एक तरफ कहा कि न मेरा कोई गुरु, और न मैं सिखाऊंगा किसी को। फिर चालीस वर्षों तक लाखों लोगों को सिखाया! जितने लोगों को बुद्ध ने सिखाया, किसी दूसरे व्यक्ति ने नहीं सिखाया। सिखाया क्या? यही सिखाया कि सिखाने को कुछ भी नहीं है। दीक्षित किस बात में किया? इसी बात में दीक्षित किया कि कोई गुरु नहीं है। अप्प दीपो भव-अपने दीए खुद बनो। यह भी सिखाना पड़ेगा, क्योंकि गलत सीख भीतर बैठ गयी है। तुमने पत्थर को हीरा मान रखा है। बुद्ध ने इतना ही सिखाया कि यह पत्थर हीरा नहीं है। हीरे को सिखाने की जरूरत नहीं है। हीरा तुम्हारे भीतर पड़ा है। पत्थर से तुम्हारा छुटकारा हो जाए, तो तुम्हारी नजर हीरे पर अपने से पड़ जाए। लेकिन तुमने पत्थर को हीरा मान लिया। तो तुम मुट्ठी पत्थर पर बांधे हो! हीरा भीतर पड़ा है। वहां नजर जाती नहीं। क्योंकि नजर तो वहां जाती है, जहां तुमने हीरा समझा है। हीरे को तुमने छोड़ रखा है; पत्थर पर नजर टिका रखी है! ___तो बुद्ध ने क्या सिखाया लोगों को चालीस वर्ष तक? यही सिखाया कि सिखाने को कुछ भी नहीं है। थोड़ा अन-सीखना जरूर करना है। यह पत्थर हीरा नहीं है-बस, इतना जानो। जैसे ही यह दिखायी पड़ जाएगा कि पत्थर हीरा नहीं है, तुम्हारी नजर मुक्त हो जाएगी पत्थर से। मुक्त नजर हीरे को फिर खोजने लगेगी। और अगर तुम्हें यह समझ में आ जाए कि कहां-कहां हीरा नहीं है; बस, पर्याप्त हो गया। फिर वहां-वहां से तुम मुक्त होने लगोगे। मुक्त होते-होते एक दिन नजर उस जगह टिक जाएगी, जहां हीरा है। ___ असार को असार की भांति जान लेना, सार को जानने का सूत्र है। असत्य को असत्य की भांति पहचान लेना, सत्य की तरफ यात्रा है। तो बुद्ध ने सिखाया कुछ भी नहीं, फिर भी सिखाया। तुम्हारी अड़चन भी मैं समझता हूं। बुद्ध की अड़चन भी समझो। मगर बुद्ध ठीक ही कहते हैं। ___ सत्य सिखाया नहीं जा सकता। लेकिन झूठ झूठ है, यह समझाया जा सकता है। और यही समझाया चालीस वर्षों तक सतत। और इसी भाव में दीक्षा दी। बुद्ध अदभुत गुरु हैं। ___दुनिया में तीन तरह के गुरु संभव हैं। एक तो गुरु, जो कहता है : गुरु के बिना। नहीं होगा। गुरु बनाना पड़ेगा। गुरु चुनना पड़ेगा। गुरु बिन नाहीं ज्ञान। 178
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy