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________________ एस धम्मो सनंतनो अलग-अलग कारागृह ! मगर सब गुलामी के नाम हैं। तो पहली बात का शोषण गुरुओं ने कर लिया। उसमें भी आधा सच था। और दूसरी बात का शोषण शिष्य कर रहे हैं, उसमें भी आधा सच है। कृष्णमूर्ति की बात में भी आधा सच है। ___ पहली बात में आधा सच है कि गुरु बिन नाहीं ज्ञान। क्योंकि गुरु के बिना तुम साहस न जुटा पाओगे। जाना अकेले है। पाना अकेले है। जिसे पाना है, वह मिला ही हआ है। कोई और उसे देने वाला नहीं है। फिर भी डर बहुत है, भय बहुत है, भय के कारण कदम नहीं बढ़ता अज्ञात में। पहली बात सच है-आधी सच है कि गुरु के साथ सहारा चाहिए। उसका शोषण गुरुओं ने कर लिया। वह गुरुओं के हित में पड़ी बात। दूसरी बात भी आधी सच है-कृष्णमूर्ति की। गुरु बिन नाहीं ज्ञान की बात ही मत करो, गुरु संग नाहीं ज्ञान। क्यों? क्योंकि सत्य तो मिला ही हुआ है, किसी के देने की जरूरत नहीं है। और जो देने का दावा करे, वह धोखेबाज है। सत्य तुम्हारा है; निज का है; निजात्मा में है। इसलिए उसे बाहर खोजने की बात.ही गलत है। किसी के शरण जाने की कोई जरूरत नहीं है। अशरण हो रहो। बात बिलकुल सच है; पर आधी। इसका उपयोग अहंकारी लोगों ने कर लिया, अहंकारी शिष्यों ने। पहले का उपयोग कर लिया अहंकारी गुरुओं ने-कि गुरु के बिना ज्ञान नहीं होगा, इसलिए मुझे गुरु बनाओ। दूसरे का उपयोग कर लिया अहंकारी शिष्यों ने, उन्होंने कहाः किसी को गुरु बनाने की जरूरत नहीं है। हम खुद ही गुरु हैं। हम स्वयं ही गुरु हैं। कहीं झुकने की कोई जरूरत नहीं है। बुद्ध अदभुत गुरु हैं। बुद्ध दोनों बातें कहते हैं। कहते हैं : गुरु के संग ज्ञान नहीं होगा। और दीक्षा देते हैं! और शिष्य बनाते हैं! और कहते हैं : किसको शिष्य बनाऊं? कैसे शिष्य बनाऊं? मैंने खुद भी बिना शिष्य बने पाया! तुम भी बिना शिष्य बने पाओगे। फिर भी शिष्य बनाते हैं। बुद्ध बड़े विरोधाभासी हैं। यही उनकी महिमा है। उनके पास पूरा सत्य है। और जब भी पूरा सत्य होगा, तो पैराडाक्सिकल होगा; विरोधाभासी होगा। जब पूरा सत्य होगा, तो संगत नहीं होगा। उसमें असंगति होगी। क्योंकि पूरे सत्य में दोनों बाजुएं एक साथ होंगी। ___पूरा आदमी होगा, तो उसका बायां हाथ भी होगा, और दायां हाथ भी होगा। जिसके पास सिर्फ बायां हाथ है, वह पूरा आदमी नहीं है। उसका दायां हाथ नहीं है। हालांकि एक अर्थ में वह संगत मालूम पड़ेगा, उसकी बात में तर्क होगा। बुद्ध की बात अतयं होगी, तर्कातीत होगी, क्योंकि दो विपरीत छोरों को इकट्ठा मिला लिया है। बुद्ध ने सत्य को पूरा-पूरा देखा है। तो उनके सत्य में रात भी है, 180
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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