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एस धम्मो सनंतनो
किसी से तुम्हारा प्रेम हुआ, अब तुम सोचते हो : यह प्रेम सदा रहे। यहां कुछ भी सदा नहीं रहता। अब तुम कहते होः इस प्रेम को बांधकर रख लूं। द्वार-दरवाजे बंद कर दूं कि यह प्रेम का झोंका कहीं बाहर न निकल जाए! हथकड़ियां डाल दूं बेड़ियां पहना दूं-प्रेम को। तालों पर ताले जड़ दूं; कहीं यह प्रेम चला न जाए! बामुश्किल तो आया है। कितना पुकारा तब आया है!
याद रखना : न तुम्हारे पुकारने से आया है, न तुम्हारे रोकने से रुकेगा। आता है अपने से, जाता है अपने से।
तुम चेष्टा करके प्रेम कर सकोगे? तुम्हें कोई आज्ञा दे करो इस व्यक्ति को प्रेम; तुम कर सकोगे? जब आता है, तब आता है। तुम अवश हो।
जिसके आने पर बस नहीं है, उसके जाने को कैसे रोकोगे? जो आते समय तुम्हारे हाथ से नहीं आया, वह जाते समय तुम्हारे हाथ से रुकेगा भी नहीं। हवा का . झोंका है-आया और गया। इस सत्य को समझ लेना धर्म को समझ लेना है। क्योंकि इस सत्य की समझ में ही तृष्णा गिर जाती है, मांग मिट जाती है। जो होता है, उसे स्वीकार कर लेते हो। जो नहीं होता, वह नहीं होता। उसे भी स्वीकार कर लेते हो। फिर जैसा है, वैसे में ही तृप्ति है। इस तृप्ति में ही तृष्णा से मुक्ति है।
तृष्णा को ठीक से समझना जरूरी है, क्योंकि तृष्णा का ही सारा जाल है।
तुम बंधे संसार से नहीं, तुम बंधे तृष्णा से। संसार को गालियां मत दो। तृष्णा से बंधे हो तुम, तृष्णा को समझो। तृष्णा को भी गालियां मत दो। क्योंकि गालियां देने से कोई समझ पैदा नहीं होती; निंदा करने से कुछ बोध नहीं पैदा होता। उतरो! आंख खोलकर तृष्णा को देखो। कितनी बार हारे हो! सदा हारे हो! जीत कभी हुई नहीं। किसी की नहीं हुई। और जब तुम्हें लगती है, जीत हो रही है, तब भी ध्यान रखना : तुम्हारी नहीं हो रही है। इसलिए हार जब तुम्हारी होगी, तब भी तुम्हारी नहीं होगी।
यहां जीवन अपने नियम से चल रहा है। कभी-कभी संयोगवशात तुम नियम के साथ पड़ जाते हो। साथ पड़ जाते हो, अच्छा लगता है। जब-जब साथ छूट जाता है, तब-तब दुख और पीड़ा होती है; कांटा गड़ता है। __तुम सदा नियम के साथ हो सकते हो, फिर महासुख है; फिर आनंद है। सदा नियम के साथ होने का अर्थ है: जो होगा, उससे अन्यथा नहीं चाहूंगा। जैसा होगा, उससे रत्तीभर भी अन्यथा नहीं चाहूंगा। दुख होगा, तो दुख अंगीकार करूंगा। सुख होगा, तो सुख अंगीकार करूंगा। मैं अपने को बीच से हटा लूंगा। जो होगा, उसे होने दूंगा। मैं रिक्त हो जाऊंगा। अड़चन न डालूंगा। बाधा न डालूंगा। मांग खड़ी न करूंगा। अपेक्षाएं न रखूगा। मैं दूर हट जाऊंगा, जैसे मैं रहा नहीं। आए हवा का झोंका-ठीक। न आए-ठीक। सूरज की किरण आए-ठीक। न आए–ठीक। उजाला आए, अंधेरा आए; सुख के दिन और दुर्दिन आएं; जो भी आता हो, आए, मैं तो हूं नहीं। ऐसी भावदशा में फिर कहां दुख? फिर कहां विषाद? इस भावदशा