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________________ एस धम्मो सनंतनो फिर बुद्ध ने देखा एक बूढ़े को लकड़ी टेककर चलते हुए; कमर झुकी हुई। बुद्ध ने पूछाः और इसे क्या हो गया? और सारथी ने कहाः यह आदमी बूढ़ा हो गया। यह जवानी के बाद की दशा और मौत के पहले की दशा है। बुद्ध ने कहा: क्या मैं भी एक दिन ऐसा ही हो जाऊंगा? सारथी ने कहा : मैं कैसे कहूं! कहना नहीं चाहिए। लेकिन झूठ भी नहीं बोल सकता हूं। यह सभी का अंतिम जीवन का फल है। यह सभी को होता है। सभी बूढ़े होंगे। ___ और तब बुद्ध ने एक लाश देखी; एक आदमी की लाश देखी। लोग उसे मरघट ले जा रहे थे। कहते होंगे: राम-नाम सत्य है! और बुद्ध ने कहाः क्या कभी यह भी मेरे साथ होगा? और तब बुद्ध ने एक संन्यासी को देखा और पूछा सारथी से : इस आदमी ने गैरिक वस्त्र क्यों पहन रखे हैं? इसे क्या हुआ है ? तो सारथी ने कहा : जैसा आपने देखा बीमार को, बूढ़े को, मृत्यु को, ऐसे ही इसने भी देखा है, और यह जीवन की व्यर्थता से जाग गया। अब यह उसकी खोज कर रहा है, जो शाश्वत है। उसी रात बुद्ध घर छोड़कर भाग गए थे! तो अशुभ-भावना पर उनका बड़ा जोर है। वे कहते हैं : जहां-जहां अशुभ है, उसे गौर से देखना; भर-आंख देखना; खूब निरीक्षण करना। जीवन में इतना अशुभ है, इतने कांटे हैं, इतनी पीड़ाएं हैं, इतना दुख है—इस सब को जो ठीक से देख लेता है, उस देखने में ही मुक्ति है। फिर देखने के बाद लोगों को नहीं कहना पड़ता: राम-नाम सत्य है। फिर ऐसा व्यक्ति स्वयं ही जान लेता है कि राम सत्य है और यहां शेष सब माया है। ___ 'जो व्यक्ति शुभ ही शुभ देखता, तीव्र राग से भरा है, संदेह से मथित है, उसकी तृष्णा बढ़ती है और वह अपने लिए और भी दृढ़ बंधन बनाता है।' 'जो मनुष्य संदेह के शांत हो जाने में रत है...।' जो अपने भीतर यह पेंडुलम की तरह घूमते हुए मन को थिर करने में लगा है। संन्यास थिरता का नाम है। संन्यास का अर्थ है : शांत होना, बहुत तरह के द्वंद्वों में न होना। क्या करूं, क्या न करूं-इसकी बहुत चिंता में न होना। जो हूं, ठीक हूं। जैसा हूं, ठीक हूं। इसी क्षण सब तरह से संतुष्ट होना। फिर संदेह नहीं उठते। फिर आकांक्षाएं-वासनाएं नहीं डोलाती, फिर अंधड़ नहीं उठते वासना के, और तुम्हारे भीतर कंपन नहीं होते। धीरे-धीरे तुम्हारी ज्योति थिर होकर जलने लगती है। 'जो सदा सचेत रहकर अशुभ की भावना करता है, वह मार के बंधन को छिन्न करेगा और तृष्णा का विनाश करेगा।' बुद्ध ने शैतान के लिए मार शब्द का उपयोग किया है। यह मार शब्द बड़ा प्यारा है। अगर इसको ठीक उलटा करो, तो राम बन जाता है। राम को पाना है, सत्य को पाना है, और यह संसार मार है। यह राम से बिलकुल 152
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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