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बोध से मार पर विजय का अर्थ होता है : रंग ! जिसकी आंखों पर रंग चढ़ा है, वह जिंदगी को वैसा नहीं देख पाता, जैसी जिंदगी है ।
जब तुम किसी स्त्री के प्रेम में पड़ जाते हो, या किसी पुरुष के प्रेम में पड़ जाते हो, तो तुम वही नहीं देख पाते, जो असलियत है। तुम वह देखने लगते हो, जो तुम कल्पना करते हो कि होना चाहिए। रंग पड़ गया आंख पर। और जब रंग पड़ जाता है, तो कुछ का कुछ दिखायी पड़ता है। जहां सूखे वृक्ष हैं, वहां हरियाली दिखायी पड़ने लगती है। जहां हड्डी - मांस-मज्जा के सिवाय कुछ भी नहीं, वहां बड़े सौंदर्य के दर्शन होने लगते हैं ! जहां सब तरह की गंदगी भरी है, वहां तुम कल्पित करने लगते हो : सुगंध । तथ्य दिखायी नहीं पड़ते फिर । फिर तुम्हारे सपने तथ्यों पर हावी हो जाते हैं ।
तो बुद्ध ने कहा : 'जो तीव्र राग से युक्त है, शुभ ही शुभ देखने वाला है... ।' और जब राग से भरे होते हो, तो सब ठीक ही ठीक दिखायी पड़ता है। गलत तो दिखायी ही नहीं पड़ता है । और इस संसार में गलत बहुत है। ठीक तो न के बराबर है, शायद है ही नहीं । गलत ही गलत है। लेकिन जब तुम राग से भरे होते हो, तो सब ठीक दिखायी पड़ता है। जिस चीज के राग से भर जाते हो, उसमें ही ठीक दिखायी पड़ने लगता है
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और ठीक यह कुछ भी नहीं है। यहां ठीक हो कैसे सकता है ? यहां मृत्यु प्रतिपल खड़ी है तुम्हें घेरे हुए, यहां ठीक कुछ हो कैसे सकता है ? यहां सब क्षणभंगुर है। पानी के बबूले जैसा है। ठीक कुछ हो कैसे सकता है ? यहां सब आया और गया; रुकता कुछ भी नहीं। यहां सुख संभव नहीं है; यहां दुख ही संभव है । ठीक यहां कुछ भी नहीं है।
यह वचन तुम्हें हैरानी से भरेगा। बुद्ध कहते हैं : 'जो शुभ ही शुभ देखने वाला है, उसकी तृष्णा और बढ़ती है। '
इसलिए बुद्ध की परंपरा में संन्यासी के लिए अशुभ- भावना का निर्देश है । बुद्ध कहते हैं: पहले तो यह देखना कि अशुभ क्या है। क्या - क्या अशुभ है, इसको ठीक से देख लेना। बुद्ध अपने भिक्षुओं को भेजते थे मरघट - कि जाकर बैठ जाओ मरघट पर ; जलती हुई लाशों को देखो; यही तुम हो ।
बुद्ध को स्वयं भी जो संन्यास का भाव उठा था, वह अशुभ को देखकर उठा था। देखा था, रथ पर बैठे हुए - एक बीमार आदमी को खांसते- खखारते । रुग्ण देह | विचार उठा था : क्या यही दशा मेरी हो जाएगी ? पूछा था अपने सारथी से इस आदमी को क्या हो गया ?
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सारथी ने कहा ः यह बीमार है। क्षय रोग से बीमार है । बुद्ध ने पूछा : क्या कभी मैं भी ऐसी दशा को पहुंच सकता हूं? सारथी ने कहा: सभी के लिए संभव है । क्योंकि शरीर रोगों का घर है।
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