SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो उसने कहाः मैं उस धर्म को आग लगाने जा रही हूं, जो स्वर्ग का आश्वासन देता है। मैं स्वर्ग को आग लगा देना चाहती हूं। और नर्क को पानी में डुबा देना चाहती हूं। क्योंकि धर्म लोभ दे स्वर्ग का और भय दे नर्क का, तो धर्म ही न रहा । 1 यह तो राजनीति हो गयी । यह तो बड़ी क्षुद्र राजनीति हो गयी। लेकिन यही तुम्हारे तथाकथित धर्म कर रहे हैं। बुद्ध ने यह नहीं किया । बुद्ध ने सिर्फ इतना ही कहाः सम्हल जाओ । सम्हलने में सुख है - निश्चित | गिरने में दुख है - निश्चित | लेकिन परिणाम की तरह नहीं । सम्हलने में सुख है । सम्हलने का स्वभाव सुख है । और गिरने में दुख है। गिरने में चोट लगती है। गिरने का स्वभाव दुख है। ऐसा नहीं कि गिरोगे, तो फिर कभी तुम्हें दुख मिलेगा भविष्य में, किसी जन्म में। और अभी होश सम्हालोगे, तो किसी भविष्य में स्वर्ग जाओगे। यह तो हद्द हो गयी पागलपन की। लेकिन इसी तरह की बातें कही गयी हैं। अभी आग में हाथ डालोगे, अंगले जन्म में जलोगे। यह क्या बात हुई ? अभी हाथ डालोगे, इसी हाथ के डालने में जलना हो जाएगा। अभी फूल छुओगे, अभी हाथ में सुगंध आ जाएगी। ऐसा ही है जीवन । जीवन नगद है, उधार नहीं । और सब तुम्हारे नर्क और स्वर्ग उधार हैं। कल्पित मालूम होते हैं। वास्तविक नहीं मालूम होते । वस्तुतः तो यही सत्य है। तुम जैसा करते हो अभी, तत्क्षण, उस करने में ही उसका फल छिपा है। तुमने किसी की तरफ करुणा से देखा और सुख बरसा । और तुमने किसी की तरफ क्रोध से देखा और दुख बरसा । परिणाम की तरह नहीं; क्रोध में ही दुख छिपा है। और प्रेम में ही सुख छिपा है। प्रेम और स्वर्ग एक ही बात के दो नाम हैं। क्रोध और नर्क एक ही बात के दो नाम हैं। R बुद्ध ने कहा : तू सम्हल । और ये गाथाएं कहीं'जो मनुष्य संदेह से मथित है...।' - अब यह युवक बड़े संदेह में पड़ा था ऐसा करूं, वैसा करूं? संन्यासी बना रहूं कि गृहस्थ हो जाऊं ? क्या करूं? क्या न करूं? ऐसा डोल रहा था घड़ी के पेंडुलम की तरह ! जो घड़ी के पेंडुलम की तरह डोलता रहेगा - यह करूं, वह करूं - जो ऐसा अनिश्चित - मना रहेगा, उसका जीवन कभी भी थिर न हो पाएंगा। और थिरता में असली राज है। कृष्ण ने कहाः स्थितप्रज्ञ - जिसकी भीतर की प्रज्ञा स्थिर हो गयी, वही महासुख को उपलब्ध होता है। 150 बुद्ध ने कहा: 'जो मनुष्य संदेह से मथित है, तीव्र राग से युक्त है... ..।' राग शब्द बड़ा प्यारा है। इसका अर्थ होता है, रंग। कहते हैं न, राग-रंग । राग
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy