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________________ बोध से मार पर विजय तुम्हारे और उसके बीच दूरी बढ़ जाएगी। फिर तुम्हारा हाथ भी दूर हो जाएगा। और शायद पापी कहने से उसके अहंकार को तुम ऐसी चोट पहुंचा दोगे, कि वह उसका प्रतिकार लेने के लिए वही कर लेगा, जिसको तुम चाहते थे कि न करे। सोच-समझकर एक-एक शब्द का उपयोग करना चाहिए। बुद्ध तो एक-एक शब्द होशपूर्वक बोलते हैं। कहाः पागल! ऐसे ही तू पूर्व में भी गिरा है। यह कोई नयी तो बात नहीं। नयी होती, तो क्षम्य भी थी। तू पहले भी तो ऐसे गिरा है। और बार-बार पछताया है। अब फिर वही करेगा? भूल भी करनी हो, तो कुछ नयी करनी चाहिए। तो कुछ लाभ होता है। उसी-उसी भूल को दोहराना, तो जड़ता है। खयाल रखना ः बुद्ध कभी नहीं कहते कि भूल मत करो। बुद्ध सदा कहते हैं कि भूल के बिना कोई सीखेगा कैसे! भूल तो होगी। लेकिन एक ही भूल को दुबारा मत करो। दुबारा की, तो फिर सीखने का उपाय न रहा। एक बार करो और सीख लो उससे, जो सीखना हो। निचोड़ ले लो। और उस निचोड़ के आधार पर जीवन को निर्मित करो। फिर दुबारा करने का तो मतलब है कि सिखावन नहीं ली। और हम तो एक-एक भूल हजारों बार करते हैं! तुमने क्रोध कल भी किया था, परसों भी किया था, उसके पहले भी किया था। जीवनभर से क्रोध कर रहे हो और हर बार क्रोध करके सोचाः अब नहीं करेंगे। बहुत हो गया। आखिर बहुत...। एक सीमा होती है हर बात की। अब पक्का निर्णय है, अब क्रोध नहीं करेंगे। ___और फिर किसी ने धक्का दे दिया। फिर किसी ने घाव छू दिया। और फिर एक क्षण में तुम आग-बबूला हो गए। भूल गए सब पछतावे; भूल गए सब वचन जो तुमने अपने को दिए। भूल गए कसमें, जो तुमने ली थीं। एक क्षण में फिर आग भभकी। फिर वही हो गया। ऐसे अगर तुम बार-बार वही-वही करते रहे, तो एक वर्तल में घूमते रहोगे। तुम्हारा जीवन रूपांतरित कैसे होगा! क्रांति कैसे घटेगी? .. तो बुद्ध ने कहा : पागल! ऐसे तो तू पूर्व में भी गिरा और बार-बार पछताया। फिर वही? अब फिर वही? भूलों से सीख। स्मृति को सम्हाल। . सुनते हो इन प्यारे वचनों को! इनमें कहीं निंदा नहीं है। इनमें सहारे के लिए बढ़ाया गया हाथ है। इसमें जागरण के लिए पकार है। कहीं कोई अपमान नहीं है। कहीं कोई नर्क का भय नहीं है। और कहीं कोई स्वर्ग का प्रलोभन नहीं है। मुसलमान फकीर स्त्री हुई राबिया। एक बार लोगों ने देखा कि वह रास्ते पर भागी जा रही है। एक हाथ में उसने मशाल ले रखी है जलती हुई, और दूसरे हाथ में एक पानी से भरा हुआ घड़ा ले रखा है। लोग पूछने लगेः राबिया! क्या पागल हो गयी हो? बाजार में यह मशाल और पानी का भरा घड़ा लेकर कहां जा रही हो? 149
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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