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________________ एस धम्मो सनंतनो तुम देखना अपने जीवन में। तुम रोज-रोज इसके प्रमाण पाओगे। इसलिए मैं कहता हूं: ये छोटी-छोटी कहानियां बड़ी अर्थपूर्ण हैं। इनके भीतर मनुष्य का पूरा का पूरा मनोविज्ञान छिपा है। यह स्त्री आकर्षित हो गयी है। दुनिया में इतने लोग हैं, एक संन्यासी पर आकर्षित होने की जरूरत क्या! कोई लोगों की कमी है? जो संसार छोड़कर चला गया है, उसे क्षमा करो; उसे जाने दो! जो अपने भीतर डूब रहा है, उसे मत खींचो बाहर।। लेकिन नहीं; जो अपने भीतर डूब रहा है, उसमें अपूर्व आकर्षण मालूम होता है। उसकी गहराई बढ़ जाती है। उसके व्यक्तित्व में एक गरिमा आ जाती है। उसमें कुछ जुड़ जाता है जो संसार से बाहर का है। उसमें पारलौकिक की थोड़ी सी छबि उतर आती है। ___ मगर तब यह स्त्री उसे प्रलोभन देने लगी कि क्यों भटकते हो? क्यों भीख मांगते हो? मैं तो हूं! सब सुविधा है; सब संपन्नता है। महल है, धन है सब तुम्हारा है। तुम द्वार-द्वार भीख मांगो, मुझे बड़ा कष्ट होता है। तुम आ जाओ मेरे पास। हम विवाहित होंगे। और जैसा कहानियों में होता है-विवाह हो गया, फिर सदा सुखी रहेंगे! ___ कहानियों में ही होता है ऐसा। या फिल्मों में होता है। फिल्म खतम हो जाती है अक्सर। शहनाई बज रही, बाजे बज रहे, विवाह हो रहा है, फिल्म खतम! क्योंकि उसके बाद फिर दोनों सुख से रहने लगे! जिंदगी में हालत उलटी है। उसके बाद ही दुख शुरू होता है- शहनाई के बाद! पहले शहनाई बजती है, फिर दुख बजता है। विवाह के बाद जीवन में दुख की शुरुआत है। जब एक व्यक्ति सुखी नहीं हो सका अकेले में, तो दो दुखी मिलकर दुख को दुगुना करेंगे, बहुगुना करेंगे; कम नहीं कर सकते। दो बीमारियां जुड़ गयीं, दुगुनी हो गयीं-या अनंतगुनी हो जाएंगी। गुणनफल हो जाएगा। मगर कम नहीं हो सकतीं। ___ अकेला आदमी जरूर थोड़ा दुखी होता है, क्योंकि अकेला होता है। मगर विवाहित आदमी के दुख का उसको कुछ भी पता नहीं है। सभी विवाहित लोग पछताते हैं कि अकेले ही क्यों न रह गए! मगर अब बड़ी देर हो चुकी। अब अकेले होने का उपाय नहीं है। सब अविवाहित चिंता करते हैं कि कब तक अविवाहित रहना है! कब तक अकेले रहना है? यह दुनिया बड़ी अजीब है! यहां अविवाहित विवाह की सोचता है। यहां विवाहित अविवाह की सोचता है। यहां जो जहां है, वहीं नहीं रहना चाहता; कहीं और होना चाहता है। कोई कहीं सुखी नहीं है। कहीं और सुख होगा; कहीं और ही हो सकता है। यहां तो निश्चित ही नहीं है। 144
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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