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________________ बोध से मार पर विजय उनकी भीतर की रोशनी की फिकर की। साधारणजन के पास तो रोशनी नहीं है, दीया ही सब कुछ है । इसे तुम खयाल करना । इस तथ्य के तुम करीब कई बार आओगे। संन्यासी में जो तुम्हें आकर्षण मालूम होता है, उसके प्रति झुक जाने का जो भाव होता है, उसके प्रेम में पग जाने की जो आकांक्षा होती है, वह इसीलिए है। क्षुद्र कारण चाहे दिखायी पड़ते हों, लेकिन हर क्षुद्रता के भीतर विराट छिपा है। अगर कण-कण में परमात्मा है, तो क्षुद्रता में भी विराट है । एक तरुण भिक्षु पर बुद्ध के, एक स्त्री मोहित होकर उसे गृहस्थ बनाने के नाना प्रकार के प्रलोभन दिए । दूसरी मन की बात समझो : अब यह स्त्री प्रभावित हुई है वस्तुतः इसके संन्यास के सौंदर्य से। और बनाना चाहती है इसे गृहस्थ । जैसे ही यह गृहस्थ हो जाएगा, यह सौंदर्य खतम हो जाएगा। इसलिए अक्सर हम अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारते हैं । वह हमें दिखायी नहीं पड़ता। हम वही कर लेते हैं, जिससे हमारा बनाया हुआ मंदिर गिर जाएगा। तुम्हें एक स्त्री में सौंदर्य दिखायी पड़ता है, क्योंकि वह अभी स्वतंत्र है। हवा की तरंग की तरह है, तुम्हारे बंधन में नहीं है। उसकी स्वतंत्रता में ही उसका अल्हड़पन है । फिर तुमने उसको बांधा विवाह में, कानून में; घर में लाकर बंद कर दिया। अब तुम्हारा उसमें रस कम होने लगे, तो आश्चर्य नहीं है। क्योंकि तुम्हारे रस का एक बुनियादी कारण था— उसका अल्हड़पन, उसकी मुक्ति, उसका सौंदर्य, उसकी स्वतंत्रता में था । जैसे तुमने आकाश में उड़ते एक पक्षी को देखा और तुम आकर्षित हो गए। फिर तुम उस पक्षी को बांधे, पकड़े; चाहे सोने के पिंजड़े में लाकर रखो, लेकिन आकाश में उड़ता हुआ पक्षी बात ही और। सोने के पिंजड़े में बैठा पक्षी बात ही और। ये दो अलग पक्षी हो गए। ये एक ही पक्षी नहीं हैं। अब तुम्हें पिंजड़े में बंद इस पक्षी में वह रस नहीं मालूम होता, जो जब उसने पंख फैलाए थे सूरज की तरफ, तब मालूम हुआ था। तुमने अपने हाथ से हत्या कर दी। एक गुलाब का फूल खिला । खूब सुंदर था। तुम जल्दी से तोड़ लिए। थोड़ी ही देर में तुम्हारे हाथ में कुम्हला जाएगा। थोड़ी ही देर में तुम रास्ते के किनारे फेंककर अपने मार्ग पर चले जाओगे। क्या हुआ! सुंदर था फूल, अपूर्व सुंदर था। लेकिन उसके सौंदर्य में जो जीवंतता थी, वह तुम्हारे तोड़ने में ही नष्ट हो गयी । जो व्यक्ति फूलों को प्रेम करता है, तोड़ेगा नहीं । जो व्यक्ति किसी को प्रेम करता है - स्त्री हो या पुरुष – उस पर बंधन न डालेगा। जो किसी पक्षी को प्रेम करता है, वह पिंजड़ों में उसे बंद नहीं करेगा। लेकिन अक्सर हम यही करते हैं । आदमी ऐसा मूढ़ है, अपने आनंद को अपने ही हाथों नष्ट कर लेता है ! 143
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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