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बुद्धत्व का कमल तरफ बंद है। तुम्हारी दिशा भ्रांत है। ठीक दिशा में चैतन्य बहने लगे; तुम भी आंख वाले हो जाओगे – उतने ही जितने बुद्ध हैं।
एक दिन बुद्ध भी ऐसे ही अंधे थे, जैसे तुम हो। फिर एक दिन आंख वाले बने। तुम भी एक दिन आंख वाले बन सकते हो। तुम जैसे हो, ऐसा ही मैं था। तो मैं जैसा हूं, ऐसे ही तुम भी हो सकते हो । जरा भी भेद नहीं है।
मैं जब तुम्हें हाथ जोड़ रहा हूं, तो तुम्हारी इसी संभावना को हाथ जोड़ रहा हूं। हाथ जोड़कर तुम्हें कह रहा हूं : बुद्ध तुम्हारे भीतर विराजमान हैं। तुम जरा उनकी सुध लो। हाथ जोड़कर तुम्हें इशारा कर रहा हूं कि तुम अपने को उतना ही मत मान लो, जितना तुमने अपने को जाना है। तुम बहुत बड़े हो; तुम विराट हो; तुम्हारे भीतर अनंत छिपा है—तत्वमसि । वह, जिसकी तुम खोज कर रहे हो, तुम्हारे भीतर बैठा है। तुम मंदिर हो, प्रभु के मंदिर । तुम्हें पता नहीं है, यह और बात | लेकिन तुम जिस जमीन पर बैठे हो, वहां खजाना गड़ा है।
एक गांव में ऐसा हुआ; एक भिखारी मरा । तीस साल एक ही जगह बैठकर भीख मांगता रहा था। जब मर गया, तो पड़ोस के लोगों ने सोचा कि इसके सब चीथड़े जला दो; इसके सब बर्तन फोड़कर फेंक दो। कुछ खास थे भी नहीं । और फिर किसी को खयाल आया कि तीस साल से यह भिखारी इस जमीन को गंदी करता रहा; थोड़ी सी जमीन भी यहां की उखाड़कर नयी जमीन डाल दो। यह अशुद्ध कर गया। बुरी तरह अशुद्ध कर गया ! गंदा था।
उन्होंने जमीन थोड़ी सी खोदी । चकित हो गए। उस जमीन में तो हंडे गड़े थे । वहां तो बड़ा खजाना था। और सारा गांव सोच-सोचकर हंसने लगा कि हद्द हो गयी ! यह भिखारी भीख मांगता रहा जिंदगीभर और जिस जमीन पर बैठा था, वहां इतना खजाना था कि यह सम्राट हो जाता !
गांवभर हंसा भिखारी पर। लेकिन एक फकीर उस गांव में था, वह पूरे गांव वालों पर हंसा। उसने कहा कि पागलो ! तुम उस भिखारी की बात कर रहे हो ! यही हालत तुम्हारी है। तुम भी जहां बैठे हो, वहां खजाना गड़ा है। तुम सम्राट हो सकते हो ।
लेकिन कोई उसकी बात समझा हो, ऐसा दिखायी नहीं पड़ता। लोग हंसे होंगे कि यह एक और पागल देखो! या हो सकता है कुछ लोग उसकी बात समझे भी होंगे, तो घर जाकर उन्होंने थोड़ी जमीन खोदकर देखी होगी । फिर खजाना नहीं मिला होगा। उन्होंने कहा होगा कि कहां पागल की बातों में पड़े हो ! कहीं ऐसा सभी जगह थोड़े ही खजाना गड़ा है। वह तो संयोग की बात थी ।
मगर फकीर तुम्हारे भीतर की तरफ इशारा कर रहा था । सब फकीरों के इशारे तुम्हारे भीतर की तरफ हैं। उनके सबके तीर तुम्हारे भीतर की तरफ हैं। किसी से पूछो; एक ही रास्ता बताते हैं : भीतर जाओ। अपने में आओ।
बाहर भटकती आंख को जरा भीतर मोड़ो। यही आंख जो अभी संसार देख रही
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