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बुद्धत्व का कमल
जानी चाहिए। मगर उनको खयाल नहीं है कि शराबी भी वही कर रहा है। तुम राजनीति में उलझकर वही कर लेते हो। अपने को उलझाए हो; लगाए हो।
भागे जा रहे हैं। दौड़े जा रहे हैं! कोल्हू के बैल की तरह जुते हैं। ऐसे जुते-जुते एक दिन मर जाते हो। यह भी तुम्हारा बेहोश होने का ढंग है। अपनी याद न आए। अपने से बचने का उपाय है यह सब। ___ यह नए की खोज अपने से बचने का उपाय है। और अपना साक्षात्कार करना है, अपने से बचना नहीं है। अपने आमने-सामने आना है। अपने को पहचानना है। अपनी पहचान के बिना तुम्हारे जीवन का रहस्य खुलेगा ही नहीं। इस आत्मा से, जिससे तुम बचते फिर रहे हो, इसी के साथ सगाई करनी है; इसी के साथ गठबंधन करना है।
खाली बैठे हैं; रेडियो खोल लेते; अखबार पढ़ने लगते। चले, उठे, क्लब चले। कि चलो, होटल हो आएं। कि चलो, सिनेमा देख आएं। किसी तरह दिन गुजार दें। फिर पड़ जाएं बिस्तर पर, और सो जाएं। सुबह फिर दौड़-धूप शुरू हो जाएगी। ऐसे ही जिंदगी बीत जाएगी। दिन आएंगे और चले जाएंगे। कब जन्म मृत्यु बन जाएगी, तुम्हें पता भी न चलेगा। तुम बेहोशी बेहोशी में ही गुजार दोगे।
नहीं; यह नए की तलाश खतरनाक है—बाहर। बड़ी खतरनाक है। अगर भीतर इसकी दिशा मोड़ दो, तो यही साधना बन जाती है। फिर तुम नया काम नहीं खोजते; नया धंधा नहीं खोजते; नया सामान नहीं खोजते। फिर तुम नयी चेतना खोजते हो; फिर तुम नयी बोध की दशाएं खोजते हो। फिर तुम कहते होः और ध्यान की गहराइयों में जाऊं, ताकि और नए-नए स्रोत मिलते जाएं। जितना तुम भीतर खुदाई करोगे, उतने ही ज्यादा स्वच्छ जल के स्रोत मिलने लगेंगे।
जैसे कोई कुएं को खोदता है, तो पहले तो कूड़ा-कर्कट हाथ लगता है। फिर रूखे मिट्टी-पत्थर हाथ लगते हैं। फिर धीरे-धीरे गीली भूमि हाथ आती है। फिर जल के स्रोत मिलने शुरू होते हैं। फिर और गहरे जाकर स्वच्छ जल मिलना शुरू होता है।
अपने भीतर खुदाई करो। अपने को कुआं बनाओ। और तुम्हारे भीतर परमात्मा का जल है। तुम्हारे भीतर समाधि की संभावना है।
पांचवां प्रश्न:
भगवान, प्रातः प्रवचन-स्थल पर आप पधारते हैं, तो बड़ी देर तक हाथ जोड़े प्रणाम की मुद्रा में आपको देखकर मुझे बड़ी पीड़ा होती है। लगता है कि आप बाहर आकर सीधे बैठ जाया
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