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एस धम्मो सनंतनो
कोई हलचल नहीं है वैसे ही जड़ है यह यातनाओं का रेगिस्तान चलो, शब्दों की किश्तियां तैराएं ख्वाबों के नखलिस्तान उगाएं संकरी हो आयी चेतना की पगडंडियों पर . अब नहीं चला जाता आओ, कुछ नया ढूंढ लाएं गुलाबी हथेलियों पर सरसों उगाएं जिससे पहाड़-से ये लंबे-लंबे दिन
बीत जाएं कुछ न कुछ करते रहो। चलो, हाथ पर सरसों उगाएं! कुछ न कुछ करते रहो!
देखा तुमने : नदी के किनारे बैठ जाते हो, तो उठा-उठाकर पत्थर ही फेंकने लगते हो नदी में! कुछ न कुछ करते रहो! घर में आते हो, तो खटर-पटर करते हो। यह चीज यहां रख दो, यह चीज वहां रख दो; खिड़की खोलो, बंद करो। कुछ न कुछ करते रहो! क्यों? क्योंकि जब खाली हो जाते हो, तब घबड़ाहट लगती है।
खाली होने का रस तुम्हें नहीं है। खाली होने का मजा तुम्हें नहीं है। खाली होने का उत्सव तुमने नहीं जाना है। जब खाली हो जाते हो, तो भय लगता है। कंपने लगते। उलझाए रहो। भूले रहो। तो अपने को विस्मृत किए रहते। यह उलझाव एक तरह की शराब है। ___शराबी क्या करता है? यही करता है, जो तुम कर रहे हो। शराबी यही करता है कि शराब पीकर अपने को भुला लेता है। तुम और ढंग से भुलाते हो। ___ अंग्रेजी में अल्कोहलिक के मुकाबले एक शब्द और अभी-अभी निर्मित हो गया है-वर्कोहलिक। एक तो वह है, जो शराब पीकर अपने को भुलाता है। और एक वह है, जो काम में अपने को भुलाए रखता है—वर्कोहलिक! ___ मोरारजी देसाई-वर्कोहलिक! शराब के विरोधी; शराब के दुश्मन; शराब
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