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________________ बुद्धत्व का कमल पाया नहीं जा सकता। जब सब पाना छूट जाता है, तब जो शेष रहता है, वही मोक्ष है। त्याग किया नहीं जा सकता। जो किया जाए, वह भोग ही होगा। जब बोध परिपूर्ण हो जाता है, तब असार असार दिखायी पड़ जाता है; सार सार। न कुछ छोड़ना पड़ता है, न कुछ पकड़ना पड़ता है। सब चुपचाप घट जाता है। विमलकीर्ति परम संन्यासी हैं। तीसरा प्रश्नः ध्यान, प्रवचन और कीर्तन-और फिर काम-धंधा! बहुत भद्दा लगता है! कैसे करते रहें? |भ दा क्यों लगता है? किसको लगता है? विमलकीर्ति की जरूरत है तुम्हें! भद्दा! तो नया अहंकार तुम पोष रहे हो कि मैं कीर्तन करने वाला; मैं ध्यान करने वाला; मैं प्रवचन सुनने वाला; मैं सत्संग करने वाला—कैसे दुकानदारी करूं? यह तो नया मैं हो गया! यह तो छूटे नहीं, और बंधे। इससे तो भला यही था कि न प्रवचन सुनते, न कीर्तन करते, न ध्यान करते; चुपचाप शांति से अपनी दुकान करते। कम से कम यह अहंकार तो न होता। एक दिन मोहम्मद ने अपने परिवार के एक युवक को कहा कि तू पड़ा-पड़ा सोया रहता है सुबह; कभी-कभी मेरे साथ चला कर मस्जिद। सुबह की नमाज भी हो जाएगी; टहलना भी हो जाएगा। ताजी हवा; सूरज का निकलना; पक्षियों के गीत। तू पड़ा-पड़ा क्या करता है? । कई बार कहा, तो एक दिन वह युवक उनके साथ हो लिया। गया मस्जिद; मोहम्मद ने नमाज पढ़ी। वह भी खड़ा-खड़ा कुछ-कुछ गुन-गुन करता रहा होगा। जब लौटने लगे, तो उसे बड़ी अकड़ आ गयी। ___ गरमी के दिन थे और लोग अभी भी अपने-अपने घरों के सामने बिस्तरों पर सोए थे। उसने मोहम्मद से कहाः हजरत! जरा इन पापियों की तरफ तो देखिए! अभी तक सो रहे हैं! यह कोई समय सोने का है! यह प्रभु-प्रार्थना का समय है ! इन पापियों की क्या गति होगी हजरत? मरकर ये कहां जाएंगे? मोहम्मद तो एकदम चौंके। यह पहली दफे गया था। कल तक यह भी सोया रहा था। आज अचानक यह पुण्यात्मा हो गया! और इसकी गुन-गुन भी देखी होगी। इसको कुछ आता-वाता तो होगा नहीं; चला गया था। साथ-साथ खड़ा हो गया। देखता होगा कि मोहम्मद झुके, तो झुक जाता होगा। मोहम्मद रुक गए। उन्होंने कहा : तू मुझे क्षमा कर। मुझसे बड़ी भूल हो गयी, 121
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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