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________________ एस धम्मो सनंतनो तो मैंने मोरारजी को कहा कि वे ऊपर बैठे हैं—एक नासमझी। आपको अखर रही है-यह दूसरी नासमझी। छिपकली देखते हैं। वह और ऊपर बैठी है ! वह महामुनि है। आप छिपकली से परेशान नहीं हो रहे कि छिपकली छप्पर पर क्यों बैठी है! बैठी रहने दो। आपको अखरा क्यों? जिस कारण वे बैठे हैं, उसी कारण आपको अखर रहा है। कुछ भेद नहीं है। आपने हाथ जोड़कर नमस्कार किया; बात खतम हो गयी। दूसरा उत्तर दे ही-ऐसी अपेक्षा क्यों! इतनी स्वतंत्रता तो दूसरे को देनी चाहिए कि उसको उत्तर देना हो दे; न देना हो न दे। आपने नमस्कार किया, इससे आपकी सज्जनता प्रगट हुई। उन्होंने नहीं जवाब दिया, इससे उनकी दुर्जनता प्रगट हुई। लेकिन अब आप खड़े होकर विवाद कर रहे हैं; अदालत में मुकदमा चलाइएगा, कि हमने हाथ जोड़े...! तो आपके हाथ जोड़ने में भी हेतु था कि आपके भी हाथ जुड़ने चाहिए! प्रत्युत्तर की आकांक्षा थी। ___ तो मैंने कहाः मुझे कुछ बहुत भेदं नहीं दिखायी पड़ता। उनमें अगर थोड़ी समझ होती, तो उतरकर नीचे आ गए होते। और अगर आपको ज्यादा अखर रहा है, आप भी ऊपर चढ़ जाएं। हम लोग नीचे बैठे रहेंगे। कोई अड़चन नहीं है। आप दोनों ही ऊपर बैठ जाएं। झंझट खतम हुई। अहंकार बड़ी कठिनाइयां खड़ी करता है; बड़ी अड़चनें खड़ी करता है। उस दिन से तुलसीजी भी नाराज हैं; मोरारजी भी नाराज हैं! उस दिन के बाद दोनों का रुख सख्त हो गया। स्वाभाविक! बुद्ध भेजना चाहते हैं अपने बोधिसत्वों को, जो करीब-करीब बुद्धत्व के आ गए हैं। लेकिन करीब-करीब जानना अभी बुद्ध हो नहीं गए। सिर्फ एक बुद्ध हुआ है-मंजश्री। जब उससे कहा. तो वह खड़ा हो गया। और मंजुश्री को भी विमलकीर्ति ने बहुत झंझेड़ा है। लेकिन वह सदा आनंदित होता था। विमलकीर्ति को देखकर सभा में अकेला वही था, जो आनंदित होता था। और सोचता थाः आज कुछ महत्वपूर्ण बात विमलकीर्ति जरूर कहेंगे। वही गया। और विमलकीर्ति ने सब तरह से चांटे मारे, और सब तरफ से धक्के दिए। मगर वह अकंप रहा। पूरा शास्त्र है, अदभुत शास्त्र है : विमलकीर्ति-निर्देश-सूत्र। उसमें लंबी चर्चा है। विमलकीर्ति चोट पर चोट करते हैं और मंजुश्री अकंप हैं। वह प्रश्न पूछे चला जाता है। वह विनम्र भाव से वे जो कहते हैं, उसे समझने की कोशिश करता है। अंततः विमलकीर्ति स्वीकार कर लेते हैं कि यही एक व्यक्ति है, जो शून्यभाव में जी रहा है। यह परीक्षण था। विमलकीर्ति-निर्देश-सूत्र पढ़ना; खूब ध्यान से पढ़ना; क्योंकि विमलकीर्ति का एक-एक वक्तव्य कोहिनूर हीरे जैसा है। उसने जो भी कहा है वह परम सत्य है। जैसे: ध्यान किया नहीं जा सकता। जब सब करना छूट जाता है, तब ध्यान। मोक्ष 120
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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