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बुद्धत्व का कमल
ध्यान में करते क्या हो? सब करना छूट जाता है। करोगे कैसे? ध्यान में तो बस होते हो। यह माला फेरनी, या घंटी बजानी, या जप करना—यह ध्यान नहीं है। क्योंकि इसमें तो करना जारी है। इसमें तो उपद्रव जारी है। इसमें तो मन का व्यापार जारी है।
जब मन का सब व्यापार रुक जाता है, तो माला कैसे फिरेगी? माला का फिरना भी मन का ही व्यापार है। राम-राम, राम-राम कौन जपेगा? जब मन का व्यापार ही रुक गया, तो रामजी भी गए। फिर राम-राम जपना नहीं हो सकता। यह जपने में कुछ फर्क नहीं है। पहले काम-काम, काम-काम जपते थे। फिर राम-राम, राम-राम जपने लगे। इससे क्या फर्क पड़ता है!
कोई आदमी बैठा रुपैया-रुपैया जपता रहता है। कोई आदमी कुछ और जपता रहता है। मगर यह सब जपने में मन का व्यवसाय है; मन की क्रिया है। और मन की क्रिया जारी रहेगी, तो मन जिंदा रहेगा।
तो विमलकीर्ति कहता कि वापस ले लो शब्द अपने, सारिपुत्र ! क्षमा मांग लो इन लोगों से! ऐसा उसने सारे बुद्ध के शिष्यों को परेशान कर रखा था। और वह कहीं भी आ जाता मौके-बेमौके। और वह ऐसे बेबूझ प्रश्न खड़े कर देता था, जिनके उत्तर किसी के भी पास नहीं थे। _इसीलिए जब उसके पांच सौ शिष्य बुद्ध के दर्शन करने आए और उनसे खबर बुद्ध को मिली कि विमलकीर्ति बीमार है, स्वभावतः उन्होंने अपने प्रमुख शिष्यों को कहा कि तुम जाओ, विमलकीर्ति के स्वास्थ्य का समाचार पूछ आओ। मगर कोई जाने को राजी नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि क्षमा करिए। क्योंकि हम तो स्वास्थ्य का समाचार पूछने जाएंगे; वे कोई झंझट खड़ी करेंगे। वे वहीं चार आदमियों के सामने बेइज्जती करवा देंगे।
और वही हुआ। जब मंजुश्री गया और उसने पूछा ः आप बीमार! तो विमलकीर्ति ने कहा : सारा संसार बीमार है। यह कोई पूछने की बात है! यहां सभी दुख में पीड़ित हैं। जन्म बीमारी; जीवन बीमारी; जरा बीमारी; मृत्यु बीमारी। सब बीमारी है। तुम क्या पूछने आए हो? बेचारा मंजुश्री पूछा कि मेरा मतलब कि आपका स्वास्थ्य इत्यादि ठीक नहीं है! तो विमलकीर्ति ने कहा कि मैं तो सदा ठीक हूं। और जो ठीक नहीं है, वह मैं नहीं हूं।
अब ऐसे आदमी से स्वास्थ्य का समाचार पूछने जाना भी मुश्किल! क्योंकि वह वहीं फजीहत हो गयी। कोई राजी नहीं था। उन्होंने कहाः क्षमा करें; हमारी योग्यता नहीं है। हमें उस आदमी के पास न भेजें। वह तो सिंह के मुंह में जाना है। वह कुछ न कुछ...वे बीमार हैं कि नहीं, हमें पक्का नहीं। हो सकता है सिर्फ बहाना हो हम को उलझाने का!
और सच बात यही थी कि विमलकीर्ति बीमार नहीं था। और ऐसे ही लेट रहे
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