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________________ एस धम्मो सनंतनो तो ध्यान रखना, यह तो समझ में नहीं आता। पहले तुम कहते हो : धन मेरा। फिर कहते हो : मैंने धन छोड़ा। मगर स्वामित्व तो कायम रहा। जब था, तब भी था। अब छोड़ा, अब भी है। ___ मेरे एक परिचित हैं। कई वर्ष पहले उन्होंने घर-गृहस्थी छोड़ दी; धन इत्यादि छोड़ दिया। मगर वे कहते फिरते हैं अभी भी; तीस साल हो गए, अभी भी कहते हैं : मैंने लाखों रुपए पर लात मार दी! मैं उनको मिलने गया एक बार, तो मैंने कहा कि लात लग नहीं पायी मालम होता है! लग गयी होती, तो अब उसकी बकवास...! तीस साल हो गए! बात खतम हो गयी। तीस साल पहले लात चलायी थी, अब इसकी कोई चर्चा तीस साल तक करता है! और अभी भी तुम बड़े रस से कहते हो कि लाखों रुपयों पर लात मार दी! हजारों पर मारते, तो इतना मजा न आता। सैकड़ों पर मारते; तो कुछ खास बात ही न थी। करोड़ों पर क्यों नहीं मारी? करोड़ों पर मारो, तो और रस आएगा! अरबों पर मारो, तो और रस आएगा। मगर यह रस क्या खबर दे रहा है? लाखों पर लात मार दी, यह नयी अकड़ है। लाख तुम्हारे थे? अब भी तुम मानते हो, तुम्हारे थे? तुमने यह हिम्मत की कैसे लात मारने की? जो तुम्हारा नहीं उस पर तुमने लात मारी कैसे? तुम हो कौन? लात तो हम उसी को मार सकते हैं, जो अपना हो; जिस पर मालकियत हो। तीस साल चले गए; लात चूकती ही चली गयी है। लात मारने का सवाल ही नहीं। सिर्फ समझ की बात है। यहां अपना क्या है ? हम नहीं थे, तब भी सब था। हम नहीं होंगे, तब भी सब ऐसा ही होगा। इस दो दिन की जिंदगी में अपना-तेरा कर लेने का सब भ्रम है। विमलकीर्ति बुद्ध के भिक्षुओं को बड़ी दिक्कत में डाल देता था। खुद बुद्ध का परम शिष्य था। लेकिन अनूठा था। अकेला था, जिसने घर-द्वार नहीं छोड़ा। और उससे सभी डरते थे। क्योंकि वह ऐसे प्रश्न उठाता था, जिनके उत्तर नहीं हो सकते थे। जैसे कोई समझा रहा है...। बुद्ध के भिक्षु जाते थे समझाने। किसी वृक्ष के नीचे सारिपुत्र बैठा है और लोगों को समझा रहा है : ध्यान करो। और आ गया विमलकीर्ति। तो पसीना छूट जाता सारिपुत्र को। क्योंकि वह खड़े होकर ऐसे सवाल उठा देता कि मुश्किल खड़ी कर देता। वह कहता : ध्यान करो! कौन करे ध्यान ? करने वाला कौन? और कृत्य से कभी ध्यान हुआ है ? ध्यान कृत्य है? करने में तो अहंकार है। और हर कृत्य अहंकार को मजबूत करता है। इसलिए विमलकीर्ति कहता : ध्यान किया नहीं जाता। ध्यान होता है। करने का शब्द वापस ले लो। कहो मत किसी से कि ध्यान करो। ध्यान कोई क्रिया है? ध्यान अक्रिया है-नान एक्शन। 116
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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