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________________ बुद्धत्व का कमल यही धर्म का सार है। दूसरे दिन सब में खबर पहुंच गयी कि बात तो कह दी है; बिलकुल ठीक कह दी। लेकिन गुरु प्रसन्न नहीं था। गुरु ने पढ़े वचन; लेकिन चुप रहा; कोई वक्तव्य न दिया। लोग सोचने लगे : यह ज्यादती है। इससे सुंदर और वचन क्या लिखा जाएगा! इसमें तो सारा सार आ गया। यह खबर चलती थी; विवाद चलता था; भिक्षु इस पर एक-दूसरे से चर्चा करते थे। ऐसे दो भिक्षु चर्चा करते भोजनालय से निकलते थे कि आश्रम के भोजनालय में जो व्यक्ति चावल कूटने का काम करता था, वह इन दोनों की बातें सुनकर हंसने लगा। वह बारह साल से चावल ही कूट रहा था । बारह साल पहले आया था, तब गुरु ने उससे पूछा था : तू धर्म जानना चाहता है या धर्म के संबंध में जानना चाहता है? तो उसने कहा थाः संबंध में जानकर क्या करूंगा ! धर्म ही जानना है । तो गुरु ने कहा था : तो फिर जा और अब चौके में चावल कूट। जब जरूरत होगी, मैं आ जाऊंगा। अब तू मेरे पास मत आना । तो बारह साल से यह आदमी चुपचाप चावल कूट रहा था । बुद्ध थोड़ी देर चुप रहे थे फूल को हाथ में लेकर । बोधिधर्म नौ साल दीवाल के सामने बैठा रहा था। और यह व्यक्ति ! इसका नाम था : हुईनेंग; यह बारह साल से चुपचाप चावल कूट I रहा था ! लोग जानते नहीं थे कि इसका कोई अस्तित्व है । सुबह से उठता, सांझ तक चावल कूटता रहता । रात गिर पड़ता। सुबह फिर उठकर चावल कूटता। बारह साल तक सिर्फ चावल कूटा। न अखबार पढ़ा। न किसी से बात की। न किताब पढ़ी। न कभी किसी से बोला । बारह साल में इसका सब शांत हो गया था। यह साक्षीभाव को उपलब्ध हो गया । यह बारह साल में पहला मौका था, जब किसी ने इसको हंसते देखा । वे दोनों भिक्षु चौंके। यह ऐसा ही था, जैसे कि तुम पत्थर पड़ा हो और एकदम उसको चलते हुए देखो। बारह साल! किसी ने सोचा भी नहीं था कि यह हंसता भी है, कि इसमें प्राण भी हैं, कि आत्मा भी है ! इसका कोई विचार ही नहीं करता था। बड़े-बड़े सवाल थे विचारने को। कौन इसकी फिकर करता था ! इसको जोर से हंसते देखकर वे दोनों ठिठके । उन्होंने कहा: तुम क्यों हंसे ? और बारह साल से तुम्हें किसी ने हंसते नहीं देखा ! बात क्या हुई आज ! जैसे महाकाश्यप हंसा था, ऐसे हुईनेंग हंसा | और हुईनेंग ने कहा कि मैं इसलिए हंसा कि ये पंक्तियां जो लिखी हैं, जिसने भी लिखी हों, महामूढ़ है । अब तो और भी चौंकाने वाली बात हो गयी। उन्होंने कहा कि चावल कूटते तेरी जिंदगी बीत गयी और तू समझता है, तू ज्ञानी है ! और हमारे आश्रम के सबसे बड़े 113
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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