________________
एस धम्मो सनंतनो
महापंडित को महामूढ़ कहता है! तो तू इनसे बेहतर पंक्तियां लिख सकता है? उसने कहाः लिख तो सकता हूं, लेकिन मैं लिखना भूल गया हूं। अगर तुम लिख दो, तो मैं बोल दूंगा। चलो अभी। ___वह गया और उसने जाकर कहा कि पोंछ दो ये पंक्तियां दूसरे की लिखी हुई। मैं जो कहता हूं, लिखो।
पहली पंक्तियां थीं किमन दर्पण की भांति है इस पर विचार-विकार की धूल जम जाती है उसे पोंछ दो यही धर्म का राज है। हुईनेंग ने कहाः कैसा दर्पण! कहां का दर्पण! मन कोई दर्पण नहीं है धूल जमेगी कहां? ऐसा जिसने जान लिया, उसने धर्म को जाना।
मन का कोई दर्पण ही नहीं है, धूल जमेगी कहां? जिसने ऐसा जान लिया, उसने धर्म को जाना।
इस व्यक्ति को मिली संपदा। जो संपदा बुद्ध ने महाकाश्यप को दी थी, वह संपदा बूढ़े गुरु ने हुईनेंग को दे दी।
ऐसी बड़ी अनूठी घटनाओं से झेन की परंपरा चलती रही है। लेकिन सदा संवाद शून्य का है, साक्षी का है।
दूसरा प्रश्नः
बौद्ध-साहित्य में एक अपूर्व प्रसंग है। एक समय विमलकीर्ति ने अपने पांच सौ शिष्यों को बुद्ध के पास उपदेश लेने भेजा
और स्वयं अस्वस्थ होकर वैशाली में रहे। बुद्ध ने सारिपुत्र, मौद्गलपुत्र, महाकाश्यप, सुभूति, पूर्णमैत्रायणीपुत्र, महाकात्यायन, अनिरुद्ध, उपाली, राहुल, आनंद और अन्य सभी बोधिसत्वों को एक-एक करके विमलकीर्ति के पास जाकर स्वास्थ्य का समाचार लाने को कहा। पर आश्चर्य, सभी ने कहा कि वे इस योग्य नहीं कि उनके स्वास्थ्य के संबंध में पूछने जाएं। और इस असमर्थता के लिए स्पष्ट कारण कहे।
114