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________________ बुद्धत्व का कमल नहीं था। फूल के संबंध में कोई धारणा भी नहीं थी। फूल सुंदर है, असुंदर है; ऐसा है, वैसा है-ऐसी कोई तरंग नहीं उठ रही थी। बुद्ध निस्तरंग उस फूल को लिए बैठे थे। फूल था; बुद्ध थे। दोनों मौजूद थे। दोनों पूरी तरह मौजूद थे। दोनों की मौजूदगी का मिलन हो रहा था। लेकिन कहीं कोई शब्द, कहीं कोई विचार, कहीं कोई प्रत्यय, कहीं कोई तरंग नहीं थी। उस साक्षीभाव में ही बुद्ध का संदेश था। वही महाकाश्यप ने पकड़ा। महाकाश्यप को पूरा सूत्र मिल गया। झेन संप्रदाय की बुनियाद पड़ी। क्या था सूत्र? साक्षी हो जाओ। ऐसे चुप हो जाओ कि तुम्हारे भीतर कोई विचार न उठे। जब तुम कुछ देखो, तो निर्विचार देखो। चैतन्य तो हो, लेकिन विचार न हो। दर्पण बन जाओ। ___अगर दर्पण बन जाओ, तो जो है, वही झलके। जो है, वही झलके, तो सत्य मिल गया। जब तक तुम विचार करोगे, तब तक झलक विकृत होती रहती है; कुछ का कुछ दिखायी पड़ता है। तुम्हारे विचार रंग जाते हैं। तुम सोचकर ही पहले से बैठे होः ऐसा है, वैसा है। तो जो है, वही नहीं दिखायी पड़ता है। तुम्हारी आंख पहले ही धुएं से भरी है। तुम्हारे दर्पण पर पहले से ही धूल जमी है। उस सुबह संदेश क्या था बुद्ध का? दर्पण हो जाओ। वह फूल तो प्रतीक ही था। उस फूल से भी बड़ी बात जो बुद्ध कह रहे थे, वह थी साक्षीभाव। वे कह रहे थे: ऐसे देखो-जगत को ऐसे देखो-जैसे मैं इस फूल को देख रहा हूं। सिर्फ शुद्ध दृष्टि हो। इसी शुद्ध दृष्टि को बुद्ध ने सम्यक दृष्टि कहा है-ठीक दृष्टि। ठीक दृष्टि यानी भीतर कोई दृष्टि ही न हो; सिर्फ दर्शन हो। ठीक दृष्टि यानी तुम्हारा कोई भाव न हो, कोई मंतव्य न हो; सिद्धांत न हो, शास्त्र न हो। सूना आकाश हो भीतर। उस सूने आकाश से जगत को देखो; तब तुम वही देख लोगे, जो है। तुम वही देख लोगे; जो छिपा है, अदृश्य है। नहीं तो तुम कुछ का कुछ देखते रहोगे। फूल तो प्रतीक था। फूल तो बाहर था। बुद्ध ने उस दिन अपने भीतर का पूरा फूल भी प्रगट किया। बाहर फूल था, भीतर फूल था। बाहर कमल था, भीतर कमल था। दो कमलों का मिलन हो रहा था। इन दो कमलों के मिलन को देखकर महाकाश्यप हंसा; प्रफुल्लित हुआ। यह अपूर्व घटना थी। इसलिए बुद्ध ने यह कमल महाकाश्यप को भेंट कर दिया और कहा अपने संन्यासियों को–कि जो मैं शब्द से कह सकता था, तुम्हें दे दिया; और जो शब्द से नहीं कह सकता था और नहीं कहा जा सकता था, वह मैं महाकाश्यप को दे रहा हूं। निःशब्द दे रहा हूं महाकाश्यप को। फिर ऐसे ही झेन की परंपरा में एक गुरु दूसरे गुरु को निःशब्द में देता रहा है। एक कथा और। __ महाकाश्यप की परंपरा में हुआ बोधिधर्म। फिर बोधिधर्म चीन गया; और भारत से झेन की परंपरा चीन पहुंची। बोधिधर्म भारतीय गुरुओं में अट्ठाइसवां गुरु था। 111
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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