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एस धम्मो सनंतनो
प्रफुल्लित आदमी के पास तुम एक तरह की सुवास पाओगे, जैसी फूलों में होती है। एक तरह का रंग, एक तरह का निखार पाओगे, जैसा फूलों में होता है। आनंदित आदमी के पास तुम्हें गंध मिलेगी; तुम्हें वैसा ही आनंद-अहोभाव मिलेगा, जैसा फूलों में होता है। ___इसलिए फूल आनंद के प्रतीक बन गए। और इसलिए मंदिरों में लोग फूल ले जाते हैं चढ़ाने। वे प्रतीक हैं। क्योंकि परमात्मा को तुम अपना सिकुड़ापन कैसे चढ़ाओगे! अपना फूलापन चढ़ाओगे। उसके चरणों में तुम प्रफुल्लित होकर अपने को निवेदन करोगे। - ये फूल तो प्रतीक हैं, जो तुम चढ़ा आते हो। इन्हीं को चढ़ाकर तृप्त मत हो जाना। ये तो संकेत हैं। ये तो इस बात की खबर हैं कि तुम परमात्मा के चरणों में चढ़ने योग्य तभी होओगे, जब तुम फूल की तरह खिले होओगे। जब तुम फूल बन गए होओगे, तभी तुम उसके चरणों में चढ़ने की पात्रता पाओगे। तुम फूल बनो, तो ही उसके चरण पा सकोगे। फूल बनने का अर्थ है : तुम तृप्त हुए। तुम जो होना चाहते थे, हो गए।
गुलाब की झाड़ी पर गुलाब नहीं होता, तो तुमने खयाल किया, कुछ खाली-खाली लगती है; कुछ खोया-खोया लगता है। जब गुलाब की झाड़ी पर फूल खिलता है, तो झाड़ी दुल्हन की तरह सजी होती है ! मगन होती है ! फूल के बाद फिर कुछ और नहीं है। अंतिम चरण आ गया। जहां तक आना था, वहां तक आना हो गया; मंजिल आ गयी; अपना घर आ गया।
ऐसा ही तो बुद्धपुरुषों में होता है : खिल गए; अब कहीं और जाने को न रहा। जो था, वह सुगंध में बिखेर दिया। पवन उसे ले चला दूर-दूर, अनंत की दिशाओं में।
बुद्ध को मरे पच्चीस सौ साल हो गए, लेकिन जिनको भी थोड़ी सी समझ है, उन्हें आज भी उनकी सुगंध मिल जाती है। जिन्हें समझ नहीं थी, उन्हें तो उनके साथ मौजद होकर भी नहीं मिली। जिनमें थोड़ी संवेदनशीलता है, पच्चीस सौ साल ऐसे खो जाते हैं कि पता नहीं चलता; फिर बुद्ध जीवंत हो जाते हैं। फिर तुम्हारे नासापुट उनकी गंध से भर जाते हैं। फिर तुम उनके साथ आनंदमग्न हो सकते हो। समय का अंतराल अंतराल नहीं होता; न बाधा बनती है। सिर्फ संवेदनशीलता चाहिए।
हालांकि ऐसे लोग भी थे, जो बुद्ध को देखने गए और जिन्होंने कहा : भाई! हमें तो कुछ दिखायी नहीं पड़ता! ___ अंधे रहे होंगे; बहरे रहे होंगे; जड़ रहे होंगे। दुख से बंद रहे होंगे। रंध्र भी नहीं होगी उनमें, जहां से बुद्ध की ज्योति प्रवेश कर जाए। सब द्वार-दरवाजे बंद करके अपने कारागृह में रहे होंगे। बुद्ध बाहर-बाहर रह गए। गंध आयी, द्वार से लौट गयी। प्रकाश आया, द्वार से लौट गया। और तुमने कहा ः हमें तो भाई कुछ दिखायी नहीं पड़ता।
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