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________________ बुद्धत्व का कमल थे, तुम्हीं जवान हुए। सब बदल गया । और फिर भी पीछे कोई खड़ा है। नहीं तो कैसे कहोगे कि मैं बच्चा था, मैं जवान हुआ ! संबंध ही टूट जाएगा। बचपन खतम हुआ, जवानी शुरू हुई; बीच में दोनों के कोई जोड़ न रहेगा। तुम कभी न कह पाओगे कि मैं बच्चा था; अब मैं जवान हो गया । जरूर कोई एक सूत्र भीतर बह रहा है। सारे परिवर्तन के बीच कुछ है, जो अपरिवर्तित है । उस कुछ को बुद्ध ने धर्म कहा है। ठीक ही कहा है। धर्म का अर्थ होता है : स्वभाव । धर्म का अर्थ होता है : सारी प्रकृति के पीछे छुपा हुआ अंतिम रहस्य | सब बदलता दिखायी पड़ रहा है; सुबह फूल खिला, सांझ मुर्झा गया। कल फिर फूल खिलेगा, फिर मुर्झाएगा। अनंत बार खिला है, अनंत बार मुर्झाया है । लेकिन फूल में कुछ सौंदर्य है, जो शाश्वत है। वह सौंदर्य फूल का धर्म है। तुमने एक गुलाब का फूल देखा; दूसरा गुलाब का फूल देखा; तीसरा गुलाब का फूल देखा। सब फूल मुर्झा जाते हैं। लेकिन फिर भी कुछ गुलाब में गुलाबीपन है। फिर भी कुछ गुलाब में पकड़ में न आने वाला सौंदर्य है । काटने जाओगे गुलाब को, विश्लेषण करोगे, नहीं पकड़ में आएगा, पकड़ के बाहर है। लेकिन हर गुलाब को तुम पहचान लेते हो ः यह गुलाब का फूल है। कैसे पहचान लेते हो ? दो गुलाब के बीच कुछ गुलाबीपन जरूर होगा, जो एक जैसा है; जो मूलतः एक जैसा है। नहीं तो एक गुलाब से दूसरे गुलाब का क्या संबंध ! : - फ़िर, गुलाब का फूल है, चमेली का फूल है, कमल का फूल है- इन सबके बीच भी कुछ है, जो शाश्वत है। और गहरे जाओ, तो वह जो खिलना, जिसको हम फूलना कहते हैं, वह जो फूल होने की आत्मा है, वह जो खिलाव है, वह एक ही है। जब गुलाब का फूल खिलता और कमल का फूल खिलता — उनके रूप अलग, ढंग अलग, व्यक्तित्व अलग, देह अलग, गंध अलग - सब अलग, आकार अलग, लेकिन खिलना तो एक ही जैसा है। चाहे घास का फूल खिले और चाहे कमल का फूल खिले, खिलना तो एक जैसा है। वह जो खिलावट है, वह उनका धर्म है। फिर फूलों को छोड़ो। एक फूल खिलता है और एक सुंदर युवती खिलती है। आकाश में तारा खिलता है। ये जो इतनी अनंत अभिव्यक्तियां होती हैं, इनमें बड़ा भेद है। लेकिन इन सबके और गहरे चलो, तो तुम पाओगे : सबके भीतर खिलने की एक परम अभीप्सा है। तुमने देखा, हमारे पास एक शब्द है – प्रफुल्लता । वह फूल से ही बना है। अर्थ तो होता है : आनंद; लेकिन बना है फुल्लता से, फूलने से । प्रफुल्लता ! जब कोई आनंदित होता है, तब उसमें भी कुछ खिलता है । तुम आनंदित आदमी में देख सकते हो, कुछ खिलता हुआ । और दुखी आदमी में देख सकते हो, कुछ बंद हो गया। दुखी आदमी बंद हो जाता है; अपने में सिकुड़ जाता है; संकुचित हो जाता है । प्रसन्न – प्रफुल्लित — खिल जाता है। 105
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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