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बुद्धत्व का कमल
देखने के लिए आंखें चाहिए। देखने के लिए खुलापन चाहिए। तुम वही देख सकते हो, जो तुम थोड़े-थोड़े अर्थों में होने लगे। तुम खिलो, तो तुम खिले हुए को देख सकोगे। तुम बंद हो तो तुम बंद को ही देख पाओगे। समान समान को समझ पाता है। तुम वही जान पाते हो, जो तुम हो I
इसलिए चोर चोर को पहचान लेता है । हजार आदमियों की भीड़ में एक चोर दूसरे चोर को पहचान लेता है। जेबकतरा जेबकतरे को पहचान लेता है। बेईमान बेईमान को पहचान लेता है । साधु ही साधु को पहचान पाएगा।
तुम वही पहचान सकते हो, जिसकी तुम्हारे भीतर थोड़ी अनुभूति होनी शुरू हो गयी। दीया सूरज को पहचान सकता है; हालांकि दीया बड़ा छोटा है, मगर रोशनी तो वही है; प्रकाश तो वही है ; प्रकाश का गुणधर्म तो वही है। बूंद सागर को पहचान सकती है; सागर होना जरूरी नहीं है। लेकिन कम से कम बूंद तो हो जाओ ! क्योंकि बूंद में भी सागर का सारा तत्व आ गया। एक बूंद को समझ लो, तो सब सागरों की कथा समझ ली।
वैज्ञानिक अगर एक बूंद का विश्लेषण कर लेते हैं, तो वे कहते हैं: हमें पानी सारे राज पता हो गए। फिर जल कहीं भी होगा; यहां ही नहीं, चांद-तारों पर कहीं होगा, तो भी हमने उसका राज समझ लिया। जल कहीं भी होगा, तो एच टू ओ ही होगा। वह उद्जन और आक्सीजन से ही मिलकर बनेगा। कहीं भी जल होगा, ऐसा ही होगा। एक बूंद जल को समझ लिया, तो सारे अस्तित्व में जहां-जहां जल है, सब समझ में आ गया।
बुद्धत्व को समझना हो, तो एकाध पखुड़ी तो तुम्हारी कम से कम खुले । न सही पूरी कली फूल बने, एकाध पखुड़ी खुले, एकाध खिड़की खुले, एकाध वातायन से गंध आए।
तो फूल प्रतीक है परिपूर्णता का । क्षणभंगुरता का भी प्रतीक है, परिपूर्णता का भी प्रतीक है। जीवंतता का भी प्रतीक है।
फूल से ज्यादा जीवंत तुमने कोई चीज देखी ! हालांकि सुबह खिलता, सांझ मुर्झा जाता। और उसी के पास पड़ा हुआ पत्थर, सदियों से पड़ा है, फिर भी पत्थर पत्थर है। फूल फूल है। पत्थर जीवंत नहीं मालूम होता; जड़ है; शायद इसीलिए ज्यादा देर जीता है। फूल इतना जीवंत है कि ज्यादा देर जी कैसे सकता है ! जितनी जीवंतता होगी, जितनी जीवंतता की गहराई होगी, उतनी ही जल्दी स्वप्न की तरह जीवन उड़ जाएगा।
फूल और बातों का भी प्रतीक है। जैसे योग में मनुष्य का जो अंतिम चक्र है, उसको सहस्रार कहा है। कहा है: सहस्रदल कमल । जैसे मनुष्य की चेतना जब परिपूर्ण रूप से प्रगट होती है, तो हजार-हजार पखुड़ियों वाला कमल खिलता है।
इसलिए बुद्ध को, महावीर को, और अवतारी पुरुषों को हमने कमल पर खड़ा किया है। वह सिर्फ सूचक है। कोई ये कमल पर ही खड़े नहीं रहे। ये कोई
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