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________________ एस धम्मो सनंतनो __जो सदा याद करते हैं भगवत्ता का, बुद्धत्व का; जो सदा अपने जीवन को एक ही दिशा में समर्पित करते चलते हैं; जिनके जीवन में एक ही अनुष्ठान है कि कैसे जाग जाएं; जो हर स्थिति और हर उपाय को जागने का ही उपाय बना लेते हैं; जो हर अवसर को जागने के लिए ही काम में ले आते हैं; जो राह के पत्थरों को भी सीढ़ियां बना लेते हैं और एक ही लक्ष्य रखते हैं कि भगवान के मंदिर तक पहुंचना है-और मंदिर उन्हीं के भीतर है, अपनी ही सीढ़ियां चढ़नी हैं; अपनी ही देह को सीढ़ी बनाना, अपने ही मन को सीढ़ी बनाना और जागरूक होकर निरंतर धीरे-धीरे स्वयं के भीतर सोए हुए बुद्ध को जगाना है। 'जिनकी स्मृति दिन-रात सदा बुद्ध में लीन रहती है, वे गौतम के शिष्य सदा सुप्रबोध के साथ सोते और जागते हैं।' ऐसा ही नहीं कि वे जागते में जागते रहते हैं, वे सोते में भी जागते हैं। 'जिनकी स्मृति दिन-रात सदा धर्म में लीन रहती है, वे गौतम के शिष्य सदा सुप्रबोध के साथ सोते और जागते हैं।' ___'जिनकी स्मृति दिन-रात सदा संघ में लीन रहती है, वे गौतम के शिष्य सदा सुप्रबोध के साथ सोते और जागते हैं।' तीन बातों पर बुद्ध ने सदा जोर दिया–बुद्ध, धर्म और संघ। बुद्ध का अर्थ है, जिनमें धर्म अपने परिपूर्ण रूप में प्रगट हुआ है। काश, तुम ऐसे व्यक्ति को पा लो जिसके जीवन में धर्म तम्हें लगे कि साकार हआ है, तो धन्यभागी हो। जिसके जीवन से तुम्हें ऐसा लगे कि धर्म केवल सिद्धांत नहीं है, जीती-जागती स्थिति है। तो बुद्ध कहते हैं, उस व्यक्ति के स्मरण से लाभ होता है जो जाग गया है। क्योंकि जब तक तुम जागे हुए व्यक्ति के पास न होओ, तब तक तुम कितना ही सोचो, तुम्हें जागरण का कोई आधार नहीं है; तुम निराधार हो। तुम्हारे भीतर संदेह बना ही रहेगा। पता नहीं ऐसी अवस्था होती है, या नहीं होती! पता नहीं, शास्त्र कहते जरूर, लेकिन ऐसा कभी किसी को हुआ है, या कपोल-कल्पना है, या पुराणकथा है। बुद्ध के पास जाने का अर्थ इतना ही है कि देखकर कि मेरे ही जैसे मांस-मज्जा-हड्डी से बने हुए आदमी में, मेरे जैसे ही आदमी में कुछ हुआ है जो मुझसे अतीत है। ठीक मेरे जैसा ही आदमी है, कुछ भेद नहीं है; जहां तक चमड़ी-मांस-मज्जा का संबंध है, ठीक मेरे जैसा है। बीमारी आएगी तो इसे भी लगेगी; जन्मा मेरी तरह, मरेगा भी मेरी तरह, सब सख-दुख इसी तरह घटते हैं: लेकिन फिर भी इसके भीतर कुछ घटा है, जो मेरे भीतर नहीं घटा। अगर मेरे ही जैसे मांस-मज्जा से बने आदमी के भीतर यह दीया जल सकता है, तो मेरे भीतर क्यों नहीं? तब एक प्यास उठती है, अदम्य प्यास उठती है। तब एक पुकार उठती है जो तुम्हें झकझोर देती है। सत्संग का यही अर्थ है। तो बुद्ध का स्मरण। जाग्रत बुद्ध मिल जाए तो सदगुरु मिल गया। जाग्रत बुद्ध
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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