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धर्म के त्रिरत्न
है? क्या नमो बुद्धस्स के पाठ मात्र से इस छोटे से बच्चे को जो हुआ है, वह किसी को हो सकता है? और यह भी खेल-खेल में! मैं तो लोगों को जीवनभर तपश्चर्या करते देखता हूं, तब नहीं होता, कैसे भरोसा करूं कि इस छोटे से लड़के को हो गया है? आप क्या कहते हैं? क्या इस लड़के की कथा सच है?
भगवान ने कहा हां महाराज, बुद्धानुस्मृति स्वयं के ही परम रूप की स्मृति है। जब तुम कहते हो नमो बुद्धस्स, तो तुम अपनी ही परम दशा का स्मरण कर रहे हो—तुम्हारा ही भगवत-स्वरूप।
बुद्ध यानी कोई व्यक्ति नहीं, बुद्ध का कुछ लेना-देना गौतम बुद्ध से नहीं है। बुद्धत्व तो तुम्हारे ही जागरण की आखिरी दशा है, तुम्हारी ही ज्योतिर्मय दशा है, तुम्हारा ही चिन्मय रूप है। जब तुम स्मरण करते हो-नमो बुद्धस्स, तो तुम अपने ही चिन्मय रूप को पुकार रहे हो। तुम अपने ही भीतर अपनी ही आत्मा को आवाज दे रहे हो। तुम चिल्ला रहे हो कि प्रगट हो जाओ, जो मेरे भीतर छिपे हो। नमो बुद्धस्स किसी बाहर के बुद्ध के लिए समर्पण नहीं है, अपने अंतरतम में छिपे बुद्ध के लिए खोज है। और अगर कोई सरल चित्त हो तो जल्दी हो जाता है।
इसीलिए जल्दी हो गया, यह छोटा बच्चा है, सरल चित्त है। तपस्वी सरल चित्त नहीं हैं। बड़े कठिन हैं, बड़े कठोर हैं। और वासना से भरे हैं, लोभ से भरे हैं। ध्यान करने चले हैं, लेकिन ध्यान में भी पीछे लक्ष्य बना हुआ है। इसने बिना लक्ष्य के किया इसलिए हो गया। इसे सहज समाधि लग गयी है। ___ नमो बुद्धस्स या बुद्धानुस्मृति स्वयं के ही परम रूप की स्मृति है। वह सतह के द्वारा अपनी ही गहराई की पुकार है। वह परिधि के द्वारा केंद्र का स्मरण है। वह बाह्य के द्वारा अंतर की जागृति की चेष्टा है। उसके अतिरिक्त और कोई शरण नहीं है। उसके अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं है। वही मृत्यु से रक्षा और अमृत की उपलब्धि बनती है। और तब उन्होंने ये गाथाएं कहीं
सुप्पबुद्धं पबुझंति सदा गोतमसावका। येसं दिवा च रत्तो च निच्चं बुद्धगता सति।। सुप्पबुद्धं पबुज्झति सदा गोतमसावका। येसं दिवा च रत्तो च निच्चं धम्मगता सति।। सुप्पबुद्धं पबुझंति सदा गोतमसावका। येसं दिवा च रत्तो च निच्चं संघगता सति।।
'जिनकी स्मृति दिन-रात सदा बुद्ध में लीन रहती है, वे गौतम के शिष्य सदा सुप्रबोध के साथ सोते और जागते हैं।'
'जिनकी स्मृति दिन-रात सदा बुद्ध में लीन रहती है...।'
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