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________________ एस धम्मो सनंतनो रात्रिभर पहरा देते रहे और सुबह जब सूरज ऊगने लगा तो जल्दी से सोने की थाली को गाड़ी की लकड़ियों में छिपाकर भाग गए। प्रातः नगर में यह समाचार फैला कि राजमहल से सम्राट के स्वर्ण-थाल की चोरी हो गयी है। सिपाही इधर-उधर खोजते हुए न पाकर, अंततः नगर के बाहर भी खोजने लगे। उस गाड़ी में वह स्वर्ण-थाल पाया गया। उस लड़के को, यही चोर है ऐसा मान, सम्राट के समक्ष प्रस्तुत किया गया। और वह लड़का तो रास्तेभर नमो बुद्धस्स जपता रहा। उसकी मस्ती देखते ही बनती थी। शहर में भीड़ उसके पीछे चलने लगी। वैसा रूप किसी ने देखा नहीं था। ___ वह उसी गांव का लड़का था। लेकिन अब किसी और दुनिया का हिस्सा हो गया था। उसका बाप भी भीड़ में चलने लगा, वह बाप भी बड़ा चकित हुआ—इस लड़के को क्या हो गया है। यह अपना नहीं मालूम होता। यह तो कहीं बहुत दूर मालूम होता है, यह कुछ और मालूम होता है। इसको हमने पहले कभी इस तरह देखा नहीं! सिपाही हथकड़ियां डाले थे, लेकिन अब कैसी हथकड़ियां! सिपाही उसे महल की तरफ ले जा रहे थे, लेकिन वह जरा भी शंकित नहीं था, अब कैसी शंका! अब कैसा भय! वह मग्न था। सिपाही थोड़े बेचैन थे और परेशान थे। और भीड़ बढ़ने लगी। और जब सम्राट के सामने लाया गया तो सम्राट तक भौचक्का रह गया जो देखा उसने सामने...सम्राट था बिंबिसार। उस समय का बड़ा प्रसिद्ध सम्राट था। बुद्ध के पास जाता भी था। बुद्ध से ध्यान की बातें भी सुनी थीं। जो बुद्ध में देखा था, जो बुद्ध के कुछ खास शिष्यों में देखा था, उसकी ही झलक-और बड़ी ताजी झलक जैसे झरना अभी फूटा हो, फूल अभी खिला हो—इस लड़के में थी। . वह उस लड़के को पूछा कि हुआ क्या है? यह थाल तूने चुराया? उस लड़के ने सारी कथा कह दी, कि हुआ ऐसा। मैं नमो बुद्धस्स कहते-कहते सो गया-सोया भी, जागा भी। मानो, न मानो, ऐसा हुआ। मुझसे भी कोई पहले कहता तो मैं भी न मानता कि सोना और जागना एक साथ हो सकता है। मगर ऐसा हुआ। कुछ बातें ऐसी हैं जो हों, तभी मानी जा सकती हैं। न हों, तो मानने का कोई उपाय नहीं। उसने कहा, आप भरोसा कर लो, ऐसा हआ। मेरे आसपास कछ लोग आकर नाचने लगे। मैंने आंख खोली, उनको नाचते देखकर मैं भी मस्त हुआ। मैंने सोचा, शायद ये भी नमो बुद्धस्स का पाठ कर रहे हैं, तो मैं फिर नमो बुद्धस्स का पाठ करने लगा। फिर पता नहीं उन्हें क्या हुआ, वे मेरे चरण दाबने लगे, भोजन लाए, थाली लाए, मुझे भोजन करवाया, मुझे सुलाया, रातभर मेरे पास खड़े रहे, पहरा देते रहे, सुबह इस थाली को लकड़ियों में छिपाकर भाग गए। फिर आपके सिपाही आए, फिर तो कथा आपको मालूम है, इसके बाद की कथा आपको मालूम है। सम्राट उसे लेकर भगवान बुद्ध के पास गया। भगवान राजगृह में ठहरे थे। सम्राट ने भगवान से पूछा-भंते, क्या बुद्धानुस्मृति इस तरह की रक्षक हो सकती 84
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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