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धर्म के त्रिरत्न
अपूर्व लाभ हो गया। उसके हृदय से गुंजार उठने लगी होगी। अब ऐसा कहना ठीक नहीं कि उसने नमो बुद्धस्स का पाठ किया, अब तो ऐसा कहना ठीक होगा, नमो बुद्धस्स का पाठ हुआ। उस अपूर्व अवसर के बीच यह घटना घटी। ध्यान स्वाभाविक हुआ।
रात्रि वहां श्मशान में कुछ भूत आए। श्मशान ! वे बड़े प्रसन्न हुए। वे उस लड़के को खा जाना चाहते थे। वे अनायास मिले इस शिकार से अत्यंत खुश हो गए और उसके आसपास नाचने लगे। ___ और वह लड़का तो उस दशा में था—या निशा सर्वभूतानाम् तस्याम् जागर्ति संयमी। वह तो सोया था और जागा भी था।
भूतों को नाचते देखकर वह उठकर बैठ गया। भूत नाच रहे थे, वह भी अपने भीतर के नाच में मग्न हो गया, उसने फिर नमो बुद्धस्स, नमो बुद्धस्स कहना शुरू कर दिया।
लड़के की जैसे ही आंखें खुलीं, भूतों को नाचते देखा, वह भी अपने अंतर के नृत्य में संलग्न हो गया। आज उसे भूत डरा न पाए। जिस दिन ध्यान हो जाए, उस दिन मृत्यु डरा नहीं पाती-भूत यानी मृत्यु के प्रतीक। जिस दिन ध्यान हो जाए, उस दिन तो कुछ भी नहीं डरा पाता। ध्यानी के लिए भय होता ही नहीं। उसे तो खूब मजा आया। उसने तो सोचा होगा, तो ये भी ध्यानस्थ हो गए, या बात क्या है? ये भी नमो बुद्धस्स का पाठ करते हैं, या बात क्या है? उसे वे भूत जैसे दिखायी ही न पड़े होंगे।
और जब उसने नमो बुद्धस्स का उच्चार शुरू कर दिया तो भूत घबड़ा गए। जब अमृत मौजूद हो तो मौत घबड़ा जाती है। जब ध्यान मौजूद हो तो यमदूत घबड़ा जाते हैं। वे तो बहुत घबड़ा गए। __उन्होंने गौर से देखा, यह कोई साधारण बच्चा नहीं था, इसके चारों तरफ प्रकाश मंडित था, एक आभामंडल था। वे तो उसकी सेवा में लग गए। वे तो भागे गए राजमहल, सम्राट की सोने की थाली और सम्राट का भोजन लेकर आए। उस छोटे से बच्चे को भोजन कराया, उसकी खूब पूजा की। फिर उसके पैर दाबे। रातभर उसकी रक्षा की, पहरा दिया।
ये तो प्रतीक हैं। जिसको ध्यान लग गया, मौत भी उसका पहरा देती है। जिसको ध्यान लग गया, मौत भी उसकी सेवा करती है। इस बात को खयाल में रखना, प्रतीकों पर मत चले जाना। ऐसे कुछ भूत हुए, ऐसा नहीं है। ऐसा अर्थ मत ले लेना। ये तो सिर्फ सांकेतिक कथाएं हैं। ये इतना ही कहती हैं कि ऐसा घटता है। जब अमृत भीतर उपलब्ध होता है, तो मौत सेवा में रत हो जाती है। मौत तभी तक घातक है जब तक तुम मरणधर्मा से जुड़े हो। जब तक तुम सोचते हो मैं देह हूं, तब तक मौत घातक है। जिस दिन तुमने जाना कि मैं देह नहीं हूं, मैं मन नहीं हूं, उस दिन मौत घातक नहीं है।