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________________ एस धम्मो सनंतनो किया। इसीलिए तो रविवार को छुट्टी मनाते हैं ईसाई । भगवान तक ने छुट्टी ली तो आदमी का क्या ! भगवान थक गया छह दिन बना-बनाकर, उस दिन विश्राम किया उसने। देर से उठा होगा सुबह, अखबार भी देर से पढ़ा होगा, चाय भी बिस्तर पर बुलायी होगी, पत्नी को डांटा-डपटा भी होगा, बिस्तर पर ही लेटे-लेटे रेडियो सुना होगा, या टी.वी. देखा होगा - जो कुछ भी किया— दोपहर तक सोया रहा होगा । थक गया। कृत्य, काम थका देता है। इस देश में हमारी धारणा है, यह जगत भगवान की लीला है; थका ही नहीं, अभी तक छुट्टी नहीं ली। छुट्टी की धारणा ही भारत के पुराणों में नहीं है, कि भगवान छुट्टी ले । छुट्टी का मतलब तो हुआ, थक जाए। खेल से कभी कोई थकता है ! सच तो यह है, जब तुम काम से थक जाते हो तो खेल में थकान मिटाते हो। दिनभर दफ्तर से लौटे, फिर घर आकर ताश खेलने लगे, या बैडमिंटन खेलने लगे। छह दिन थक गए, फिर सातवें दिन गोल्फ खेलने चले गए। थकान को मिटाते हो खेल से। तो खेल से तो कोई कभी थकता नहीं, खेल से तो पुनरुज्जीवित होता है। हमारी धारणा यही है कि जीवन कृत्य नहीं होना चाहिए, जीवन खेल होना चाहिए। खेल का यही फर्क है । कृत्य का लक्ष्य होता है, खेल का लक्ष्य नहीं होता । खेल में कोई फलाकांक्षा नहीं होती, काम में फलाकांक्षा होती है। तुम दफ्तर में बैठे काम करते हो, थक जाते हो, उतना ही काम तुम रविवार के दिन घर में बैठकर करते रहते हो, नहीं थकते। अपना काम, तो खेल है। खोल ली कार, सफाई करने लगे, तो नहीं थकते; दिनभर लगे रहते हो। दफ्तर में फाइल यहां से वहां रखने में थक जाते हो। जहां काम आया, वहां थकान है। क्योंकि काम आया, लक्ष्य आया । उस लड़के को पहली दफा खेल खेल हुआ। अब मजा और ही आने लगा, अब जीत की कोई चिंता न रही। संयोग से यह घटना घटी थी । नमो बुद्धस्स कहना ऐसे ही खेल-खेल में शुरू किया था। लेकिन उस रात संयोग स्वाभाविक हो गया। उस रात मंत्र प्राणों में उतर गया। उस दिन मंत्र ऊपर-ऊपर न रहा; उस दिन मंत्र को उच्चार न करना पड़ा; उस दिन भीतर से उच्चार उठने लगा । इसी को तो हमने प्रणव कहा है। जब मंत्र अपने आप उठने लगे। वह सन्नाटा, वह रात, जरा सोचो उस रात की । तुम होते, तुम्हारे भीतर भी कुछ होता - भय पकड़ता । और भय उठने लगता तुम्हारी नाभि से, और सारे प्राण भय से कंपने लगते । कंपित हो जाते, रात ठंडी भी होती तो पसीना आता । भूत-प्रेत दिखायी पड़ने लगते । मरघट, कोई साधारण जगह नहीं! अंधेरी रात, छोटा सा बच्चा! लेकिन यह संयोग, यह सुअवसर पाकर जो मंत्र अब तक किसी तरह ऊपर-ऊपर चलता रहा था, आज उसने पहली दफे डुबकी मार दी। इस मौके का 82
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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