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धर्म के त्रिरत्न लगी। अब खेलता था, लेकिन खेल में दूसरे ढंग का मजा आने लगा। अब खेलने के लिए खेलने लगा। पहले जीतने के लिए खेलता था ।
जो जीतने के लिए खेलता है, उसकी हार निश्चित है। क्योंकि वह तना हुआ होता है, वह परेशान होता है । उसका मन खेल में तो होता ही नहीं, उसकी आंख गड़ी होती है आगे, भविष्य में, फल में – जल्दी से जीत जाऊं। जो खेलने में ही डूबा होता है, उसको फल की कोई फिकर ही नहीं होती । वह खेलने में पूरा संलग्न होता है । उसके पूरे संलग्न होने से जीत आती है । और जीत की आकांक्षा से पूरे संलग्न नहीं हो पाते, तो हार हो जाती है।
तुम देखते न, आमतौर से सब लोग कितनी अच्छी तरह बातचीत करते हैं, गपशप करते हैं। फिर किसी को मंच पर खड़ा कर दो, और बस उनकी बोलती बंद हो गयी, हाथ-पैर कंपने लगे। क्या हो जाता है मंच पर पहुंचकर ? कौन सी अड़चन हो जाती है? भले-चंगे थे, सदा बोलते थे; असल में इनको चुप ही करना मुश्किल था, बोल-बोलकर लोगों को उबा देते थे, आज अचानक बोलती बंद क्यों हो गयी ?
आज पहली दफा लोगों को सामने बैठे देखकर इनको एक खयाल पकड़ गया कि आज कुछ ऐसा बोलना है कि लोग प्रभावित हो जाएं। बस, अड़चन हो गयी । 'आज बोलने में पूरी प्रक्रिया न रही, लक्ष्य में ध्यान हो गया। लोग प्रभावित हो जाएं! ये इतनी आंखें जो देख रही हैं, ये सब मान लें कि हां, कोई है बोलने वाला ! कोई है वक्ता ! बस इसी से अड़चन हो गयी।
मंच पर खड़े होकर अभिनेता कंपने लगता है, हाथ-पैर डोलने लगते हैं, पसीना-पसीना होने लगता है । क्यों ? पहली दफा कृत्य में नहीं रहा, कृत्य के पार आकांक्षा दौड़ने लगी। बड़ा अभिनेता वही है जिसको इसकी चिंता ही नहीं होती कि लोगों पर क्या परिणाम होंगे। और बड़ा वक्ता वही है जिसे खयाल भी नहीं आता कि लोग इसके संबंध में क्या सोचेंगे। बड़ा खिलाड़ी वही है जो खेल में पूरा डूब जाता है, समग्रभावेन । उसी से जीत आती है ।
धीरे-धीरे इसको भी फिकर छूटने लगी । यह लड़का भी रस लेने लगा खेलने में। एक और ही मजा आने लगा। एक और तरह की तृप्ति मिलने लगी। अंतर्निहित तृप्त खेल के भीतर । क्रीड़ा में ही रस हो गया। खेल काम न रहा। खेल पहली दफा खेल हुआ ।
इसलिए इस देश में हम कहते हैं- भगवान ने सृष्टि बनायी, ऐसा नहीं कहते - सृष्टि का खेल खेला, लीला की । क्या फर्क है खेल और सृष्टि में ?
पश्चिम में क्रिश्चियनिटी है — ईसाइयत है – जुदाइजम है, इस्लाम है, वे सब कहते हैं, भगवान ने दुनिया बनायी । कृत्य की तरह । छह दिन में बनायी, फिर थक गया। खेल से कोई कभी नहीं थकता, खयाल रखना, इसलिए हिंदुओं के पास छुट्टी का कोई उपाय ही नहीं है भगवान के लिए। छह दिन में थक गया, सातवें दिन विश्राम
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