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धर्म के त्रिरत्न
रोओगे; परेशान होओगे, टूटोगे-तब तक तुम चट्टान हो, तब तक तुम रेत हो-होकर दुख पाओगे। खंड-खंड हो जाओगे।
जिस दिन तुमने राम के बल का सहारा पकड़ लिया, जिस दिन तुमने कहा, मैं नहीं हूं, तू ही है; यही तो अर्थ होता है स्मरण का, प्रभु-स्मरण का, नाम-स्मरण का। उस लड़के ने कहा कि मैं थोड़े ही जीतता हूं, भगवान जीतते हैं। मैं उनका स्मरण करता हूं, उन्हीं पर छोड़ देता हूं, मैं तो उपकरण हो जाता हूं। जैसा कृष्ण ने अर्जुन को गीता में कहा कि तू निमित्त मात्र हो जा; तू प्रभु को करने दे जो वह करना चाहते हैं; तू बीच में बाधा मत बन। जैसा कबीर ने कहा कि मैं तो बांस की पोंगरी हूं। गीत मेरे नहीं, गीत तो परमात्मा के हैं। जब उसकी मरजी होती, गाता, मैं तो बांस की पोंगरी हूं। सिर्फ मार्ग हूं उसके आने का। गीतों पर मेरी छाप नहीं है, गीतों पर मेरा कब्जा नहीं है, गीत उसके हैं, मैं सिर्फ द्वार हूं उसका-उपकरण मात्र।
ऐसा ही उस लड़के ने कहा कि मैं थोड़े ही जीतता हूं! इसमें कुछ राज नहीं है, मैं प्रभु का स्मरण करता हूं, फिर खेल में लग जाता हूं, फिर वह जाने।
मगर इस बात में बड़ा बल है। क्योंकि जैसे ही तुम्हारा अहंकार 'विगलित हुआ, तुम बलशाली हुए, तुम विराट हुए। अहंकार विगलित होते ही तुम जल की धार हो गए, अहंकार के रहते-रहते तुम चट्टान हो। और अहंकार के विगलित होने का एक ही उपाय है कि किसी भांति तुम अपना हाथ भगवान के हाथ में दे दो। किस बहाने देते हो, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। तुम्हारा हाथ भगवान के हाथ में हो। तुम निमित्त मात्र हो जाओ। __यह संयोग की ही बात थी कि उस लड़के ने कहा, मैं भगवान का स्मरण करता हूं, बुद्ध का स्मरण करता हूं-नमो बुद्धस्स। जीतने के लिए आतुर इस युवक ने इसकी नकलपट्टी शुरू की।
खयाल रखना, कभी-कभी गलत कारणों से भी लोग ठीक जगह पहुंच जाते हैं। कभी-कभी संयोग भी सत्य तक पहुंचा देता है। कभी-कभी तुम जो शुरू करते हो, वह कोई बहुत गहरा नहीं होता, लेकिन शुरू करने से ही यात्रा का पहला कदम पड़ जाता है। ___मेरे पास लोग आते हैं, वह कहते हैं, संन्यास हम लेना चाहते हैं, लेकिन कपड़े रंगने से क्या होगा? मैं कहता हूं, तुम फिकर छोड़ो, कपड़े तो रंगो, कुछ तो रंगो। वह कहते हैं, कबीर तो कहते हैं—मन न रंगाए रंगाए जोगी कपड़ा! मैं कहता हूं, ठीक कहते हैं, मन भी रंग जाएगा, तुम कपड़े रंगाने की हिम्मत तो करो! जो कपड़े रंगाने तक से डर रहा है, उसका मन कैसे रंगेगा? कबीर ठीक कहते हैं। मगर खयाल रखना, कबीर ने जोगियों से कहा था। कबीर ने उनसे कहा था जिन्होंने कपड़े रंग लिए थे और मन अभी तक नहीं रंगा था। उन्होंने कहा था-मन न रंगाए जोगी! जोगियों से कहा था कि तुमने मन तो रंगाया नहीं, रंगा लिए कपड़ा! इससे क्या
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