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________________ एस धम्मो सनंतनो है; हारने में कोई हारता नहीं, जीतने में कोई जीतता नहीं—यहां हार और जीत सब बराबर है; क्योंकि मौत सब को एक सा मिटा जाती है। हारे हुए मिट्टी में गिर जाते हैं, जीते हुए मिट्टी में गिर जाते हैं। यह तो छोटा बच्चा था, इसको तो हम क्षमा कर सकते हैं, यह जीतना चाहता था। इसने सब उपाय कर लिए थे, इसने सब तरह से निरीक्षण किया था कि जीतने वाले की कला क्या है! क्यों जीत-जीत जाता है! मैं क्यों हार-हार जाता हूं। शक्तिशाली था जीतने वाले से, इसलिए बात बड़ी आश्चर्य की थी—इसकी शक्ति का स्रोत कहां है! क्योंकि शरीर से मैं बलवान हूं, जीतना मुझे चाहिए गणित के हिसाब से। लेकिन जिंदगी बड़ी अजीब है, यहां गणित के हिसाब से कोई बात घटती कहां है? यहां गणित को मानकर जिंदगी चलती कहां है? यहां कभी-कभी कमजोर जीत जाते हैं और शक्तिशाली हार जाते हैं। देखते हैं, पहाड़ से जल की धारा गिरती है, चट्टान पर गिरती है। जब चट्टान पर पहली दफा जल की धारा गिरती होगी तो चट्टान सोचती होगी-अरे पागल, मुझको तोड़ने की कोशिश कर रही है! और जल इतना कोमल है, इतना स्त्रैण है, और चट्टान इतनी परुष, और इतनी कठोर, मगर एक दिन चट्टान टूट जाती है। रेत होकर बह जाएगी चट्टान! जो समुद्रों के तटों पर रेत है, जो नदियों के तटों पर रेत है, वह कभी पहाड़ों में बड़ी-बड़ी चट्टानें थीं। सब रेत चट्टान से बनी है। और चट्टानें टूटती हैं जल की सूक्ष्म धार से, कोमल धार से। कोमल धार अंततः जीत जाती है। मगर धार में कुछ बात होगी, जीतने का कुछ राज होगा। इस जगत में सब कुछ गणित के हिसाब से नहीं चलता। इस जगत का कुछ सूक्ष्म गणित भी है। ___ तो सब ऊपर के उपाय कर लिए होंगे उस लड़के ने। कैसे खेलता है, उसका एकांत में अभ्यास भी किया था, मगर फिर भी हार-हार गया—न जीता सो न जीता। पूछना नहीं चाहता था उससे, क्योंकि उससे क्या पूछना उसके जीतने का राज! चुपचाप निरीक्षण करता था। जब कोई उपाय न बचा होगा तो उसने पूछा। एक ही बात अनबूझी रह गयी थी कि हर खेल शुरू करने के पहले वह लड़का आंख बंद करके खड़ा हो जाता है, उसके ओंठ कुछ बुदबुदाते हैं, तब एक अपूर्व शांति उसके चेहरे पर मालूम होती है, एक रोशनी झलकती है। अब सिर्फ यही एक राज रह गया था। और सब तो कर लिया था, उससे कुछ काम नहीं हुआ था। अंततः उसने पूछा कि भाई मुझे बता दो। क्या करते हो? कैसा स्मरण? क्या मंत्र? संयोग की बात थी कि वह लड़का नमो बुद्धस्स का पाठ करता था। वही उसका बल था। सुना है न तुमने वचन–निर्बल के बल राम। निर्बल भी बली हो जाता है अगर राम का साथ हो। और बलवान भी कमजोर हो जाता है अगर राम का साथ न हो। यहां सारा बल राम का बल है। यहां जो अपने बल पर टिका है, हारेगा। जिसने प्रभु के बल पर छोड़ा, वह जीतेगा। जब तक तुम अपने बल पर टिके हो, 78
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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