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________________ एस धम्मो सनंतनो मरघट का सन्नाटा मौत बन सकती थी छोटे बच्चे की, लेकिन उस बच्चे को अमृत का अनुभव बन गयी। सब हम पर निर्भर है। वही अवसर मृत्यु में ले जाता है, वही अमृत में। वही अवसर वरदान बन सकता, वही अभिशाप। सब हम पर निर्भर है। अवसर में कुछ भी नहीं होता, हम अवसर के साथ कैसे चैतन्य का प्रवाह लाते हैं, इस पर सब निर्भर होता है। था मरघट, लेकिन मरघट की तो उसे याद ही न आयी। उसने तो एक क्षण भी सोचा नहीं कि मरघट है। उसने तो सोचा कि ऐसा अवसर, धन्यभाग मेरे। पिता आए नहीं, बैल लौटे नहीं, सन्नाटा अपूर्व है, द्वार-दरवाजे बंद हो गए, आज इस घड़ी को भगवान के साथ पूरा जी लूं। वह नमो बुद्धस्स कहते-कहते, कहते-कहते, बुद्ध के साथ एकरूप हो गया होगा। जिसका हम स्मरण करते हैं, उसके साथ हम एकरूप हो जाते हैं। वह निद्रा अपूर्व थी। इस निद्रा के लिए योग में विशेष शब्द है-योगतंद्रा। आदमी सोया भी होता और नहीं भी सोया होता। इसीलिए तो कृष्ण ने कहा है कि जब सब सो जाते हैं तब भी योगी जागता है। उसका यही अर्थ है। या निशा सर्वभूतानाम् तस्याम् जागर्ति संयमी–जब सब सो गए होते हैं, जो सब के लिए अंधेरी रात है, निद्रा है, सुषुप्ति है, योगी के लिए वह भी जागरण है। उस रात वह छोटा सा बच्चा योगस्थ हो गया, योगारूढ़ हो गया। और अनजाने हुआ यह, अनायास हुआ यह। चाहकर भी नहीं हुआ था, ऐसी कुछ योजना भी न थी। अक्सर यही होता है कि जो योजना बनाकर चलते हैं, नहीं पहुंच पाते, क्योंकि योजना में वासना आ जाती है। अक्सर अनायास होता है। यहां रोज ऐसा अनुभव मुझे होता है। जो लोग यहां ध्यान करने आते हैं बड़ी योजना और आकांक्षा से, उन्हें नहीं होता। जो ऐसे ही आ गए होते हैं, संयोगवशात, सोचते हैं कर लें, देख लें, शायद कुछ हो, उन्हें हो जाता है। और पहली दफा तो जब किसी को होता है तो आसानी से हो जाता है, दूसरी दफे कठिन होता है। क्योंकि दूसरी दफे वासना आ जाती है। पहली दफा तो अनुभव था नहीं, तो वासना कैसे करते? ध्यान शब्द सुना भी था तो भी ध्यान का कुछ अर्थ तो पकड़ में आता नहीं था-क्या है, कैसा है। जब पहली दफा ध्यान उतर आता है और किरण तुम्हें जगमगा जाती है, ऐसा रस मिलता है कि फिर सारी वासना उसी तरफ दौड़ने लगती है। वह वासना जो बड़े मकान चाहती थी, बड़ी कार चाहती थी, सुंदर स्त्री चाहती थी, शक्तिशाली पति चाहती थी, धन-पद चाहती थी, सब तरफ से वासना इकट्ठी होकर ध्यान की तरफ दौड़ पड़ती है। क्योंकि जो धन से नहीं मिला, वह ध्यान से मिलता है। जो पद से नहीं मिला, वह ध्यान से मिलता है। जो किसी संभोग से नहीं 76
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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