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________________ धर्म के त्रिरत्न गया। बैल मिले तो, लेकिन तब जब कि सूर्य ढल गया था और नगर द्वार-बंद हो गए थे। सो वह नगर के बाहर न आ सका। बेटा नगर के बाहर रह गया, बाप नगर के भीतर बंद हो गया। अंधेरी रात, बाप तो बहुत घबड़ाया। श्मशान में पड़ा छोटा सा बेटा, क्या गुजरेगी उस पर! बाप तो बहुत रोया-चिल्लाया, लेकिन कोई उपाय न था, द्वार बंद हो गए सो द्वार बंद हो गए। और लकड़हारे की सुने भी कौन! और लकड़हारे के बेटे का मूल्य भी कितना! द्वारपालों से सिर फोड़ा होगा, चिल्लाया होगा, रोया होगा, उन्होंने कहा कि अब कुछ नहीं हो सकता, बात समाप्त हो गयी। अंधेरी रात, अमावस की रात, और वह छोटा सा लड़का मरघट पर अकेला। लेकिन उस लड़के को भय न लगा। भय तो दूर, उसे बड़ा मजा आ गया। ऐसा एकांत उसे कभी मिला ही न था। गरीब का बेटा था, छोटा सा घर होगा, एक ही कमरे में सब रहते होंगे और बच्चे होंगे, मां होगी, पिता होगा, पिता के भाई होंगे, पत्नियां होंगी पिता के भाइयों की, बूढ़ी दादी होगी, दादा होंगे, न मालूम कितनी भीड़-भाड़ होगी, कभी ऐसा एकांत उसे न मिला था। यह अमावस की रात, आकाश तारों से भरा हुआ, यह मरघट का सन्नाटा, जहां एक भी आदमी दूर-दूर तक नहीं, नगर के द्वार-दरवाजे बंद, सारा नगर सो गया, यह अपूर्व अवसर था, ऐसी शांति और सन्नाटा उसने कभी जाना नहीं था। वह बैठकर नमो बुद्धस्स का पाठ करने लगा। नमो बुद्धस्स, नमो बुद्धस्स, नमो बुद्धस्स कहते कब आधी रात बीत गयी उसे स्मरण नहीं। तार जुड़ गया, संगीत जम गया, वीणा बजने लगी, पहली दफा ध्यान की झलक मिली। शांति तो मिली थी अब तक, रस भी आना शुरू हुआ था, लेकिन अब तक बूंद-बूंद था, आज डुबकी खा गया, आज पूरी डुबकी खा गया। आज डूब गया, बाढ़ आ गयी। ऐसा नमो बुद्धस्स, नमो बुद्धस्स, नमो बुद्धस्स कहता-कहता गाड़ी के नीचे सरककर सो गया। यह साधारण नींद न थी, नींद भी थी और जागा हुआ भी था—यह समाधि थी। उसने उस रात जो जाना, उसी को जानने के लिए सारी दुनिया तड़फती है। उस लकड़हारे के बेटे ने उस रात जो पहचाना, उसको बिना पहचाने कोई कभी संतुष्ट नहीं हुआ, सुखी नहीं हुआ। सुख बरस गया। उसका मन मग्न हो उठा। शरीर सोया था और भीतर कोई जागा था-सब रोशन था, उजियारा ही उजियारा था, जैसे हजार-हजार सूरज एक साथ जग गए हों। जैसे जीवन सब तरफ से प्रकाशित हो उठा हो। किसी कोने में कोई अंधेरा न था। __ वह किसी और ही लोक में प्रवेश कर गया, वह इस संसार का वासी न रहा। जो घटना किसी दूसरे के लिए अभिशाप हो सकती थी, उसके लिए वरदान बन गयी। 75
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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