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एस धम्मो सनंतनो कोरा अभ्यास ही था, फिर भी उसे इसमें धीरे-धीरे रस आने लगा। तोतारटंत ही था यह मंत्रोच्चार, पर फिर भी मन पर परिणाम होने लगे। गहरे न सही तो न सही, पर सतह पर स्पष्ट ही फल दिखायी पड़ने लगे। वह थोड़ा शांत होने लगा। थोड़ी उच्छृखलता कम होने लगी। थोड़ा छिछलापन कम होने लगा। हार की पीड़ा कम होने लगी, जीत की आकांक्षा कम होने लगी। खेल खेलने में पर्याप्त है, ऐसा भाव धीरे-धीरे उसे भी जगने लगा। भगवान के इस स्मरण में वह अनजाने ही धीरे-धीरे डुबकी भी खाने लगा। शुरू तो किया था परिणाम के लिए, कि खेल में जीत जाऊं, लेकिन धीरे-धीरे परिणाम तो भूल गया और स्मरण में ही मजा आने लगा। पहले तो खेल के शुरू-शुरू में याद करता था, फिर कभी एकांत मिल जाता तो बैठकर नमो बुद्धस्स, नमो बुद्धस्स, नमो बुद्धस्स का पाठ करता। फिर तो खेल गौण होने लगा
और पाठ प्रमुख हो गया। फिर तो जब कभी पाठ करने से समय मिलता तो ही खेलता। रात भी कभी नींद खुल जाती तो बिस्तर पर पड़ा-पड़ा नमो बुद्धस्स का पाठ करता। उसे कुछ ज्यादा पता नहीं था कि क्या है इसका राज, लेकिन स्वाद आने लगा। एक मिश्री उसके मुंह में घुलने लगी। __छोटा बच्चा था, शायद इसीलिए सरलता से बात हो गयी। जितने बड़े हम हो जाते हैं उतने विकृत हो जाते हैं। सरल था, कूड़ा-कचरा जीवन ने अभी इकट्ठा न किया था-अभी स्लेट कोरी थी।
जो बच्चे बचपन में ध्यान की तरफ लग जाएं, धन्यभागी हैं। क्योंकि जितनी देर हो जाती है, उतना ही कठिन हो जाता है। जितनी देर हो जाती है, उतनी ही अड़चनें बढ़ जाती हैं। फिर बहुत सी बाधाएं हटाओ तो ध्यान लगता है। और बचपन में तो ऐसे लग सकता है। इशारे में लग सकता है। क्योंकि बच्चा एक अर्थ में तो ध्यानस्थ है ही। अभी संसार पैदा नहीं हुआ है। अभी कोई बड़ी महत्वाकांक्षा पैदा नहीं हुई है। . छोटी सी महत्वाकांक्षा थी कि खेल में जीत जाऊं, और तो कोई बड़ी महत्वाकांक्षा नहीं थी—राष्ट्रपति नहीं होना, प्रधानमंत्री नहीं होना, धनपति नहीं होना, पद-प्रतिष्ठा का मोह नहीं था। गिल्ली-डंडा खेलता होगा, इसमें जीत जाऊं; छोटी सी महत्वाकांक्षा थी, थोड़े ही स्मरण से टूट गयी होगी। थोड़ा सा जाल मन ने फैलाया था, थोड़े ही स्मरण से कट गया होगा।
एक खुला आकाश उसे दिखायी पड़ने लगा। धीरे-धीरे उसके सपने खो गए, और दिन में भी उठते-बैठते एक शांत धारा उसके भीतर बहने लगी।
एक दिन उसका पिता गाड़ी लेकर उसके साथ जंगल गया और लकड़ी से गाड़ी लाद घर की तरफ लौटने लगा। मार्ग में श्मशान के पास बैलों को खोलकर वे थोड़ी देर विश्राम के लिए रुके–दोपहरी थी और थक गए थे। लेकिन उनके बैल दूसरों के साथ राजगृह में चले गए-वे तो सोए थे और बैल नगर में प्रवेश कर गए। पिता बेटे को वहीं गाड़ी के पास छोड़, गाड़ी को रखाने की कह नगर में बैलों को खोजने
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