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एस धम्मो सनंतनो
इसीलिए सभी ध्यानियों ने शराब का विरोध किया है। तुम समझ लेना, क्यों विरोध किया है।
सभी ध्यानियों ने शराब का विरोध किया है, कारण यह नहीं है कि शराब में कोई खराबी है, कारण यह है कि शराबी कभी ध्यानी नहीं हो पाएगा, क्योंकि उसने तो ध्यान का सब्स्टीट्यूट चुन लिया । ध्यान में भी एकरसता होती है, शराब में भी एकरसता होती है । तो जो शराब पीकर एकरसता को पाने लगा - सस्ती एकरसता मिल गयी । जाकर एक बोतल पी डाली, इतने सस्ते में मिल गयी ।
ध्यान तो वर्षों के श्रम से मिलेगा, ध्यान के लिए तो बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, ध्यान के लिए तो बड़ा संघर्षण करना होगा, इंच-इंच बढ़ेगा, बूंद-बूंद बढ़ेगा । और इतना सस्ता मिलता नहीं है, महंगा सौदा है, लंबी यात्रा है; पहुंचेंगे, नहीं पहुंचेंगे, पक्का नहीं है; पहाड़ की चढ़ाई है। शराब तो उतार है, जैसे पत्थर को ढकेल दिया पहाड़ से; बस एक दफा धक्का मार दिया, काफी है। फिर तो अपने आप ही उतार पर उतरता जाएगा, खाई - खंदक तक पहुंच जाएगा, जब तक खाई न मिले तब तक रुकेगा ही नहीं; धक्का मारने के बाद और धकाने की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर पहाड़ पर चढ़ाना हो पत्थर को, ऊर्ध्वयात्रा करनी हो, तो धकाने से काम न चलेगा - धकाते ही रहना पड़ेगा, जब तक कि चोटी पर न पहुंच जाए। और तुमने जरा भूल-चूक की कि पत्थर नीचे लुढ़क जाएगा। कहीं से भी गिरने की संभावना है।
ध्यानी के गिरने की संभावना है, शराबी के गिरने की संभावना नहीं है। यह बात देखते हो ! इसलिए तुमने एक शब्द सुना होगा - योगभ्रष्ट । तुमने भोगभ्रष्ट शब्द सुना? भोगी के भ्रष्ट होने की संभावना नहीं है । वह खड्डे में है ही, उससे नीचे गिरने का कोई उपाय नहीं है। सिर्फ योगी गिरता है, भोगी कभी नहीं गिरता । भोगी गिरा ही हुआ है। वह आखिरी जगह पड़ा ही हुआ है, अब और क्या आखिरी जगह होगी। योगी गिरता है। योगी ही गिरता है । भोगी होने से तो योगभ्रष्ट होना बेहतर है। कम से कम चढ़े तो थे, इसकी तो खबर है। गिरे सही, चले तो थे, उठे तो थे, चेष्टा तो की थी, एक प्रयास तो किया था; एक अभियान तो उठा था; एक यात्रा, एक चुनौती स्वीकार तो की थी - गिर गए, कोई बात नहीं । हजार बार गिरो, मगर उठ उठकर चलते रहना ।
शराब का ध्यानियों ने विरोध किया है, क्योंकि शराब परिपूरक है। यह सस्ते में ध्यान की भ्रांति करवा देती है। ध्यानी को भी तुम शराब जैसी मस्ती में डूबा हुआ पाओगे, और शराबी में भी तुम्हें ध्यान की थोड़ी सी गंध मिलेगी - रसमुग्ध - फर्क इतना ही होगा शराबी बेहोश है, ध्यानी होश में है। शराबी ने अपनी स्मृति खो दी और ध्यानी ने अपनी स्मृति पूरी जगा ली। मनुष्य बीच में है, मनुष्य द्वंद्व में है। मनुष्य आधा अचेतन है, आधा चेतन है। शराबी पूरा अचेतन है, ध्यानी पूरा चेतन है ।
बुद्ध कहते हैं, अगर तुमने कोई ऐसी ध्यान की प्रक्रिया की हो जिससे तुम बेहोश
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