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________________ धर्म के त्रिरत्न नींद में भी सब शांत हो जाता है, समाधि में भी सब शांत हो जाता है। लेकिन गहरी नींद में शांत होता है चेतना के बुझ जाने के कारण और समाधि में शांत होता है चेतना के पूरे जग जाने के कारण। इसे ऐसा समझो कि मनुष्य के जीवन में तब तक तनाव और बेचैनी रहेगी जब तक मनुष्य का कुछ हिस्सा चेतन और कुछ अचेतन है। तो दो विपरीत दिशाओं में आदमी भागता है-चेतन और अचेतन। अचेतन अपनी तरफ खींचता है, चेतन अपनी तरफ खींचता है। इस रस्साकशी में आदमी की चिंता पैदा होती है; संताप पैदा होता है, एंग्विश पैदा होता है। चेतन की मानें तो अचेतन नाराज हो जाता है, अचेतन की मानें तो चेतन नाराज हो जाता है। अचेतन की मानें तो चेतन बदला लेता है, चेतन की मानें तो अचेतन बदला लेता है। ___ जैसे समझो, एक सुंदर स्त्री जा रही है राह से और तुम्हारा मन लुभायमान हो गया, तुम कामातुर हो गए, यह अचेतन से आ रहा है। यह तुम्हारी पशुता का हिस्सा है। यह उस जगत की खबर है जब न कोई नीति थी, न कोई नियम थे। यह उस चैतन्य की खबर है जैसा पशुओं के पास है—जो भला लगा, जैसा भला लगा, कोई उत्तरदायित्व न था। अचेतन कहता है, इस स्त्री को भोग लो। चेतन कहता है, नहीं। नीति है, मर्यादा है, अनुशासन है; तुम विवाहित हो, तुम्हारे बच्चे हैं। 'अब अगर तुम चेतन की मानो तो अचेतन बदला लेता है। अचेतन दुखी होता है, तिलमिलाता है, परेशान होता है। तुम उदास हो जाते हो। इसलिए पति उदास दिखायी पड़ते हैं, पत्नियां उदास दिखायी पड़ती हैं। अचेतन बदला लेता है। तुम किसी तरह अचेतन को दबाकर उसकी छाती पर बैठ जाते हो, कहते हो, नहीं, यह ठीक नहीं है, यह करने योग्य नहीं है इसलिए नहीं करेंगे, यह कर्तव्य नहीं इसलिए नहीं करेंगे। मगर भीतर बात तो उठ गयी है, भीतर वासना तो जग गयी है, तुम दबाकर बैठ जाओगे। तुम सांप के ऊपर बैठ गए। लेकिन सांप भीतर जिंदा है और कुलबुलाएगा। सपनों में सताएगा। रात जब नींद में सो जाओगे, तब शायद ही किसी को अपनी पत्नी का सपना आता हो! दूसरे की स्त्रियों के सपने आते हैं। शायद ही अपने पति का सपना आता हो! ___ भारत में सती की जो परिभाषा थी, वही थी—जिस स्त्री को सपने में भी अपने पति के अतिरिक्त किसी की याद न आती हो, उसको हम सती कहते थे। यह बड़ी अनूठी परिभाषा थी। यह बात बड़ी कीमत की है। सपने में कसौटी है। जागने में न आती हो, यह कोई बड़ी बात नहीं। क्योंकि जागने में तो हम सम्हालकर बैठे रहते हैं। चेतन को मानकर चलते हैं, अचेतन को पीछे धकाए रहते हैं, उसे अंधेरे में डाले रखते हैं। असली कसौटी तो तब है जब नींद में भी पर की याद न आए। नींद में कैसे दबाओगे? नींद में तो तुम हो ही नहीं; तुम तो सो गए, तुम तो बेहोश हो, दबाने वाला मौजूद न रहा, लड़ने वाला मौजूद न रहा। तो नींद में तो जो
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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